_*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 006 📕*_
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_*[ क्या यह मुसलमान है। ]*_
_*....यही मौलवी इस्माईल देहलवी अपनी एक दूसरी किताब "सिराते मुस्तक़ीम" में लिखता है------*_
_*✍🏻 (1)....नमाज़ में हुज़ूर अकरम ﷺ का ख़्याल लाना अपने गधे और बैल के ख़्याल में डूब जाने से बदतर है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 सिराते मुस्तक़ीम, सफा नं 119, प्रकाशक :- इदाराहे अलरशीद, देवबन्द जिला सहारनपुर*_
_*....वहाबियों के एक दूसरे आलिम जिन्हें वहाबी हज़रत हुज्जतुल इस्लाम कहते नहीं थकते जनाब "मौलवी कासिम नानोतवी" है जिसकोो मदरसा देवबन्द का बानी बतीया जाता है। अपनी एक किताब "तहजीरून्नास" में लिखते हैं।*_
_* ✍🏻 (1).... बिल-फर्ज हुज़ूरﷺ के बाद भी कोई नबी आ जाए तो भी हुज़ूर के ख़ात्मियत [ हुज़ूर के आख़िरी नबी होने ] मे कोई फर्क न आएगा। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 तहज़ीरून्नास, सफा नं 14, मत्बुआ मक्तबा फैज जामा मस्जीद देवबंद यु.पी.*_
_*✍🏻 (2)....उम्मती अ़मल मे अंबीया से बजाहीर बराबर हो जाते है और बसा औकात बढ भी जाते है! [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 तहज़ीरून्नास, सफा नं 5, प्रकाशक :- मक़तब-ए-फै़ज़, जामा मस्जिद, देवबन्द, यू-पी*_
_*....वहाबियों के नक़ली मुजद्दिद मौलवी "रशीद अहमद गंगोही" अपनी किताब में अपना ख़बीस अ़कीदह बयान करते हुए लिखते हैं।*_
_*✍🏻 (1)....जो सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहे वोह सुन्नत ज़माअत से खारिज नही होगा। [ यानी सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहने वाला मुसलमान ही रहेगा। ] [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 फ़तावा-ए-रशीदीया जिल्द नं 2, सफा नं 11*_
_*✍🏻 (2).... मोहर्रम में इमामे हुसैन [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] की शहाद़त का बयान करना , सबील लगाना, शरबत पिलाना ऐसे कामों में चन्दा देना येह सब हराम है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 फ़तावा-ए-रशीदीया, जिल्द नं 2, सफा नं 114, प्रकाशक :- मक़तब-ए-थानवी, देवबन्दी, यू पी*_
_*....इन्हीं रशीद अहमद गंगौही के शागिर्द और वहाबियों के बड़े इमाम "मौलवी खलील अहमद अम्बेठी" ने अपने उस्ताद "गंगौही" की इज़ाज़त और देख रेख में "बराहिनुल कातिअ़" नामी एक किताब लिखी आइये देखिए उसमें उन्होंने किया गुल खिलाया है।----*_
_*✍🏻 (1)....हुज़ूर अकरम ﷺ से ज़्यादा इल्म शैतान को है। शैतान को ज़्यादा इल्म होना क़ुरआन से साबित है जबकि हुज़ूर का इल्म क़ुरआन से साबित नहीं है। जो शैतान से ज़्यादा इल्म हुज़ूर का बताए वोह मुश'रिक़ [ बुतो की पूज़ा करने वाला क़ाफ़िर ] है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55*_
_*✍🏻 (2)....अल्लाह तआला झूठ बोलता है। [यानी अल्लाह झूठा है।] [माज़अल्लाह]*_
_*📕 बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 273*_
_*✍🏻 (3).... हुज़ूर अकरमﷺ का मीलाद [ईदे मिलादुन्नबी ] मनाना कन्हैया [ हिन्दूओ के देव ] के जन्मदिन मनाने की तरह है। बल्कि उससे भी ज़्यादा बदतर है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 152,*_
_*✍🏻(4).... हुज़ूर ﷺ ने उर्दू ज़बान मदरसा-ए-देवबन्द में आकर उलमा-ए-देवबन्द से सीख़ी [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 30*_
_*✍🏻 (5).... हुज़ूरﷺ को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं । [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, प्रकाशक :- "कुतुब खाना इमदादिया" देवबन्द यू पी*_
_*....यह है "मौलवी अशरफ अली थानवी" जो वहाबियों के हकीमुल उम्मत है और वहाबियों के नजदीक इनके पैर धोकर पीने से नज़ात मिलती है। यह साहब अपनी किताब में लिखते हैं।----*_
_*✍🏻 (1)....नबी-ए-करीम ﷺ को जो इल्मे गै़ब है इसमें हुज़ूरﷺ का क्या कमाल ऐसा इल्मे गै़ब तो हर किसी को हर बच्चे व पागलों बल्कि तमाम जानवरों को भी हासिल है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 हिफ़जुल इमान, सफा नं 8, प्रकाशक :- दारूल किताब, देवबन्द यू पी*_
_*✍🏻 (2).... इन्हीं थानवी साहब की एक किताब "रिसाला-ए-अलइम्दाद" मे है कि------*_
_*.....इनके एक मुरीद ने कलमा पढ़ा "ला इलाहा इल्लल्लाह अशरफ अली रसूलुल्लाह" [माज़अल्लाह ] और अपने पीर अशरफ अली थानवी से पूछा कि " मेरा यह कलमा पढ़ना कैसा है" ?*_
_*इसके जवाब में थानवी साहब ने कहा----- तुम्हारा ऐसा कहना ज़ायज़ है तुम इसके लिए परेशान न हो तुम अगर इस तरह का कलमा पढ़ रहे हो तो सिर्फ़ इस वजह से के तुम्हें मुझ से मुहब्बत है। लिहाजा तुम्हारा ऐसे कलमा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं । [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 रिसाल-ए-इम्दाद, सफा नं 45,*_
_*....थानवी साहब की एक और फ़तवे की किताब "बहेशती ज़ेवर" में है। कि-------*_
_*हाथ में कोई नज़िस [ नापाक़ ] चीज़ [ पेशाब, आदमी का, जानवर का, पाखाना वगैरह ] लग जाए तो किसी ने जबान से तीन (3) मर्तबा चाट लिया तो पाक़ हो जाएगा। मगर चांटना मना है! [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 बहेशती ज़ेवर, जिल्द नं, 2 सफा नं 18*_
_*👉🏻 येह है जनाब "मौलवी इल्यास कानदहलवी" जो तबलीग़ी ज़माअत के बानी [ Founder ] है। इनका कहना है कि-----*_
_*✍🏻 (1).... अल्लाह तआला अगर किसी से काम लेना नहीं चाहते तो चाहे तमाम अंबीया (नबी) भी कितनी कोशिश कर ले तब भी ज़र्रा नही हिल सकता और अगर लेना चाहें तो तुम जैसे जईफ से भी वह काम ले ले जो अंबीया (नबियों) से भी न हो सके। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 मक़ातिबे इल्यास, सफा नं 107, प्रकाशक :- इदारहे इशाअ़ते दीनियात नई दिल्ली।*_
_*👉🏻 यह है जनाब "मौलवी अबूआला मौदूदी" जिन्होंने जमाअ़ते-इस्लामी नाम की एक नई जमाअ़त क़ायम की थी। आज इस जमाअ़त की कई ज़ायज़ व ना ज़ायज़ औलादें S-I-M S-I-O के नाम से वज़ूद में आ चुकी है। जो मौदूदी ताअ़लीमात को फैला रही है इनके नजदीक मौदूदी ही सबकुछ है चुनान्चे इन्हें मौदूदी साहब हुक़्म देते हैं।*_
_*✍🏻 (1)....तुम को खुदा की मरज़ी के मुताबिक ज़िन्दगी बसर करने का तरीक़ा नही माअ़लूम----- अब तुम्हारा फर्ज है। कि खुदा के सच्चेे पैग़म्बर की तलाश करो इस तलाश मे तुमको निहायत होश़ियारी और समझ बुझ से काम लेना चाहीये! क्यो के अगर किसी गलत आदमी को तुमने पैगंबर समझ लिया तो वह तुम्हे गलत रास्ते पर लगा देंगा! मगर जब तुम्हे खुब जॉंच पडताल करने के बाद यह यकीन हो जाए के फ़लां शख्स खुदा का सच्चा पैग़म्बर है तो उस पर तुम्हें पूरा भरोसा करना चाहिए। और उसके हर हुक़्म की इताअ़त करनी चाहिए। [ माज़अल्लाह ]*_
_*(मुख्तसर यह के मौदुदी साहब के नजदिक इस दौर मे भी खुदा का सच्चा पैगंबर तलाश करने की जरूरत है और यह तलाश फर्ज है)*_
_*📕 रिसाल-ए-दीनियात, सफा नं 47, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, दिल्ली*_
_*👉🏻 यही मौदूदी साहब अपनी दूसरी किताब में लिखते हैं।----*_
_*✍🏻 (2)....जो लोग हाज़ते माँगने अजमेर [ ख़्वाज़ा ग़रीब नवाज़ की मजार पर ] या फिर सैय्यद़ सैय्यद़ सालार मसऊद गाज़ी की मजार पर या ऐसे ही दुसरे मकामात पर जाते हैं। वोह इतना बड़ा गुनाह करते हैं। कि कत्ल और जिना भी उस से कमतर [ कम ] है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 तजदीदो इहया-ए-दीन, सफा नं 96 प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली*_
_*👉🏻 यही अबूआला मौदूदी अपनी एक और किताब में अपनी यह ही आला दर्ज़े की बक़वास लिखते हैं। कि-----*_
_*✍🏻 (3)....सब जगह अल्लाह के रसूल अल्लाह की किताब लेकर आए और बहुत मुम्क़िन है। कि बुध, कृष्ण, राम, मानी, सुकरात, फ़िसा, गोरस, वगैरह इन्हीं रसूलो में से हो । [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 तफहीमात, जिल्द नं 1, सफा नं 124, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली*_
_*👉🏻 वहाबियों के पीरो के पीर "महमूदुल हसन" ने अपनी एक किताब में लिख मारा कि-----*_
_*✍🏻 (1).... झूठ, ज़ुल्म व तमाम बुराइयां [ जैसे चोरी, जहालत, ज़ुल्म, गी़बत, ज़िना, वगैरा ] करना अल्लाह के लिए कोई ऐब नही, और न इन कामों के करने की वजह से उस की ज़ात में कोई नुकसान आ सकता है। [ माज़अल्लाह ]*_
_*📕 जहदुलमक़्ल, जिल्द नं 3, सफा नं 77*_
_*[ हमारा ऐलान Our Challenge ]*_
_*✍🏻..हमने यहां जितने भी वहाबी जमाअ़त से मुत्अ़ल्लिक़ हवाले पेश किए है। वोह सब उन्हीं के उलमा की किताबों से नक़ल किये है। याद रहे येह किताबें आज भी छप रही है। और इनके मदरसो व क़ुतुब ख़ानो [ बुक स्टॉलो ] पर आसानी से मिल जाती है।*_
_*....हमारा आ़म ऐलान [ challenge ] है। कि अगर कोई साहब इन बातों को या हवालों मे से किसी एक हवाले को गल़त साब़ित कर दे। तो उसे रुपये [50,000] नगद दिए जाएंगे*_
_*बाकी अगले पोस्ट में....*_
_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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