_*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 014 📕*_
―――――――――――――――――――――
_*💫 [ लडकी की राज़ामन्दी ] 💫*_
_*आपने अक्सर देखा और सुना होगा कुछ ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों को ताना देते है कि इस्लाम ने औरतों के साथ नाइंसाफ़ी की है। हालांकि उन कम अक्लो को यह नही सुझता कि उनके धर्म ने औरतों के कितने ही हुक़ूक का किस बेदर्दी से गला घोंटा गया है।*_
_*यह कम फहम औरतों को सड़कों, बाज़ारों और अपनी झूठी इबादत गांहों मे आध नंगी हालत में खुले आ़म में घूमने फिरने को ही उनकी आज़ादी और जाइज़ हक़ समझते हैं !*_
_*बेशक मज़हबे इस्लाम ऐसी बेहूदा़ हरकतो की हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। वह औरतों को बाजारों और सड़कों पर खुले आ़म अपने हुस्न का मुज़ाहिरा पेश करने से सख्ती से मना करता है। लेकिन याद रहे वह औरतों को उनके ज़ायज़ हुक़ूक़ देने में कोई कमी भी नही करता और न ही औरतों के साथ बुरा सुलूक करने उनके साथ ज़बर्दस्ती करने, या किसी किस्म की ना इन्साफ़ी करने की इज़ाज़त देता है। वह हर मुआमले में औरतों से बराबरी और इन्सानी हुस्ने सुलूक करने का मर्दों को हुक़्म देता है।*_
_*चुनान्चे शरीअ़ते इस्लामी में जहां कई मामलों में औरत की मर्जी ज़रूरी समझी जाती है। वही शादी के लिये उसकी रज़ामंदी ज़रूरी है*_
_*📚 [ हदीस :- ].... हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया---*_
_*💎 "कुंवारी का निकाह न किया जाए जब तक उसकी रज़ामंदी न हासिल कर ली जाए! और उसका चुप रहना उसकी रज़ामंदी है! और न ही निकाह किया जाए बेवा का जब तक उससे इज़ाज़त न ली जाए।*_
_*📕 तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा 566, मुस्नदे इमामे आज़म सफा नं 214*_
_*बाकी अगले पोस्ट में....*_
_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
No comments:
Post a Comment