_*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 015 📕*_
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_*💫 [ लडकी की राज़ामन्दी ] 💫*_
_*📚 [ हदीस :- ] हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत रिवायत करते है। के......*_
_*"एक औरत के शौहर का इंतेकाल हो गया। उसके देवर ने उसे निकाह का पैग़ाम भेजा मगर [औरत का] बाप देवर से निकाह करने पर राज़ी न हुआ, उसने किसी दूसरे मर्द से उस औरत का निकाह कर दिय! वह औरत नबी ए करीम ﷺ की ख़िदमत में हाजिर हुई और आपसे पूरा किस्सान बयान किया । हुज़ूर ﷺ ने उसके बाप को बुलावाया । उससे आपने फ़रमाया "यह औरत क्या कहती है" उस ने जवाब दिया.... "सच कहती है, मगर मैंने इसका निकाह ऐसे मर्द से किया है जो इसके देवर से बेहतर है"। इस पर हुज़ूर ﷺ ने उस मर्द और औरत में जुदाई करवा दी और औरत का निकाह उसके देवर से कर दिया जिससे वह निकाह करना चाहती थी।*_
_*📕 मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 124, सफा नं 215*_
_*✍🏻 [ शरह :- ].... हज़रत मुल्ला अ़ली क़ारी [रहमतुल् अलैह] इस हदीस के मुत्तअल्लीक तहरीर फरमाते हैं। कि.....*_
_*"इब्ने क़त्तान [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने कहा है कि हजरत इब्ने अब्बास रदी अल्लाहु तआला अन्हु की यह हदीस सही है! और यह औरत हज़रत खंसा बिन्त ख़ुज़ाम [रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा] थी, जिस की हदीस इमाम मालिक व इमाम बुखारी ने भी नक्ल की है की उन का निकाह हुजुर ए अक्दस ﷺ ने रद्द फ़रमा दिया था"!*_
_*📚 [ हदीस :- ]....बजरत इमाम बुखारी रहेमतुल्लाह अलैही ने बुखारी शरीफ मे यही हदीस इन अ़ल्फाजो़ के साथ नक़्ल की है। हज़रत ख़नसा बिन्त ख़ेज़ाम [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] इरशाद फरमाती है। क.....*_
_*"उनके वालिद ने उन का निकाह कर दिया जबकि वह उस निकाह को ना पसंद करती थी। वह रसूलुल्लाह ﷺ की बारगा़ह में हाजिर हों गयी आप ने फरमाया कि "वह निकाह नहीं हुआ"*_
_*📕 मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा नं 424, बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा नं 76*_
_*💎 इन तमाम अहादीसे मुबारका से मालुम हुआ के शादी से पहले कुंवारी लड़की और बेवा (औरत) से इज़ाज़त लेना ज़रूरी है, और हमारे आक़ा ﷺ की बहुत ही प्यारी सुन्नत भी है। चुनांचे इस हदीसे पाक में है। कि.....*_
_*📚 [ हदीस :-] हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है!*_
_*नबी ए करीम ﷺ अपनी किसी साहबज़ादी को किसी के निकाह में देना चाहते तो उनके पास तशरीफ लाते और फ़रमाते "फलाम शख्स [ यहां उनका नाम लेते] तुम्हारा जिक्र करता है" और फिर [ साहबजादी की रजा़मन्दी माअ़लूम हो जाने पर] निकाह पढ़ा दिया करत!*_
_*📕 मुस्नदे इमाम ए आज़म, बाब नं 123, सफा नं 214*_
_*आज देखा यह जा रहा है मां, बाप लड़की की मर्ज़ी को कोई अहमियत नहीं देते अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जहॉ चाहते है शादी कर देते है! अब शादी के बाद अगर लड़की को लड़का पसंद आ गया तो ठीक, और अगर पसंद न आया तो झगड़ो और नाइत्तेफ़ाक़ीयों का एक सैलाब उमड़ पड़ता है और कभी कभी नौबत तलाक़ तक आ पहुंचती है।*_
_*अपनी लख्ते जिगर के लिए अच्छे लड़के की तलाश करना और फिर उसे ब्याह देना यक़ीनन यह मां-बाप की ही ज़िम्मेदारी है! लेकिन जहां इतनी उठा पटक करते है वही अगर लड़की की मर्जी (रज़ामन्दी) मालूम कर ली जाए तो इसमें भला क्या हर्ज है। लड़की से उसकी मर्ज़ी मालूम भी करनी चाहिए। क्यों कि उसे ही सारी ज़िन्दगी गुजारना है।*_
_*और हाँ अगर लडकी खुल कर कहने मे झिझक या शर्म महसूस करती हो तो उसे भी दबे अलफ़ाज़ो में या किसी रिश्तेदार औरत के जरीये अपनी मर्जी का इज़हार करे, यह भी सुन्नत है!*_
_*बाकी अगले पोस्ट में....*_
_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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