_*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 018 📕*_
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💫 *_[ महर का बयान ]_* 💫
*_आपका और हमारा यह तर्जुबा है कि मुसलमानों में आज बड़ी तादाद में ऐसे लोग है जो शादी तो कर लेते है, महर भी बाँध लेते हैं लेकिन उन्हें इस बात की मालुमात नही होती के महर कितने क़िस्म के होते है! और उनका निकाह किस क़िस्म के महर पर हुआ है! लिहाजा मुसलमानों को यह जान लेना जरूरी है।_*
💫 *_महर तीन क़िस्म का होता हैं।_*💫
1⃣ *_महर ए मुअज्जल (नगद)_ _महर ए मुअज्जल यह है कि खल्वत से पहले महर देना करार पाया हो। [चाहे दिया कभी भी जाए!]_*
2⃣ *_महर ए मुवज्जल (उधार)_ _महर ए मुवज्जल यह है कि महर की रक़म देने के लिए कोई वक्त़ मुक़र्रर कर दिया जाए।_*
3⃣ *_महर ए मुतलक़_ _महर ए मुतलक़ यह है कि जिस में कुछ तय न किया जाए।_*
_📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]*_
*👉🏻 _इन तमाम महर की किस्मों में मेहर "मुअ़ज्जल (नगद)" रखना ज़्यादा अ़फज़ल है। [यानी रुख़्सती से पहले ही महर अदा कर दी जाए]_*
_📕 *कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60*_
✍🏻 *_[ मसअ़ला :-].... महरे मुअ़ज्जल वसूल करने के लिए अगर औरत चाहे तो अपने आपको शौहर से रोक सकती है! यानी यह इख्तियार है की वती (मुबाशरत) से रोके रखे! और मर्द को हलाल नहीं की औरत को मजबूर करे या उसके साथ किसी तरह की जबरदस्ती करे । यह हक़ औरत को उस वक्त़ तक हासिल है जब तक महर वसूल न कर ले! इस दर्मियान अगर औरत चाहे तो अपनी मर्ज़ी से हमबिस्तरी (सोहबत) कर सकती है! इस दौरान भी मर्द अपनी बीवी का नान नफ़्क़ा [खाना, पीना, कपड़ा, खर्चा वगैरह] बंद नही कर सकता। जब मर्द औरत को उसका महर दे दे तो औरत का अपने शौहर को सोहबत करने से रोकना जाइज़ नही।_*
_📕 *[ फ़तावा-ए-मुस्ताफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60, ]*_
✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_ _इसी तरह अगर महरे मुवज्जल (उधार) था! [यानी महर अदा करने के लिए एक ख़ास मुद्दत मुक़र्रर की गयी थी] और वह मुद्दत खत्म हो गई तो औरत शौहर को हमबिस्तरी (सोहबत) करने से रोक सकती है।_*
✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_ _औरत को महर माफ करने के लिए मजबूर करना जाइज़ नहीं ।_*
📕 *_कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60_*
*_इस जमाने में ज़्यादा तर लोग यही समझते कि महर देना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक रस्म है, और कुछ लोगों का ख़्याल है कि महर तलाक के बाद ही दिया जाता है! और कुछ लोग समझते हैं कि महर इसलिए रखते है कि औरत को महर देने के ख़ौफ से तलाक़ नही दे सकेगा।_*
*_यही वजह है हमारे मुल्क में ज़्यादा तर लोग महर नही देते यहां तक के इन्तिक़ाल के बाद उनके जनाज़े पर उनकी बिवी अाकर महर माफ करती है। वैसे औरत के माफ कर देने से महर माफ तो हो जाता है, लेकिन महर दिए बगै़र दुनिया से चले जाना मुनासीब नही, खुदा न ख्वासता पहले औरत का इंतिक़ाल हो गया और अगर वह माफ न कर सकी, या महर माफ करने की उसे मोहलत न मिली तो हक्कुल-अब्द मे गिरफ्तार और दिन व दुनियॉ मे रुसवा शर्मसार होंगा! और रोजे क़यामत में सख़्त पकड़ और सख़्त अ़ज़ाब होंगा! लिहाजा इस खतरे से बचने के लिए महर अदा कर देना चाहिए। इस मे सवाब भी है और यह हमारे आक़ा ﷺ की सुन्नत भी है_*
_*बाकी अगले पोस्ट में....*_
_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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