Thursday, October 3, 2019



    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 046 📕*_
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            _*दोबारा सोहबत करना हो तो*_

  👉🏻 *_एक रात मे  मुबाशरत (सोहबत) के बाद उसी रात में दूसरी मरतबा सोहबत करने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो वुज़ू करले कि यह फ़ायदेमन्द है, और अगर सोहबत न भी करना हो तो वुज़ू करके सो जाए।_*

📚 *_हदीस : हज़रत उमर व अबू सईद खुदरी [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम] से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इर्शाद फरमाया_*

 💎💎 *_"जब तुम मे से कोई अपनी बीवी से एक बार सोहबत करने के बाद दोबारा सोहबत का इरादा करे तो उसे वुज़ू करना चाहिए।_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 139, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, सफा नं 188_*

✍🏻 _*इमाम ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है----------*_

💫 *_"एक बार सोहबत कर चुके, और दोबारा (सोहबत) का इरादा हो तो चाहिए कि अपना बदन धो डालें (वुज़ू कर ले) और अगर ना पाक़ आदमी कोई चीज़ खाना चाहे तो चाहिए कि वुज़ू कर ले फिर खाये! सोने का इरादा हो तो भी वुज़ू करके  सोए,  हालाकीं (वुज़ू करने के बाद) नापाक़ ही रहेगा (जब तक ग़ुस्ल न कर ले) लेकिन सुन्नत यही है"।_*

📕 *_कीमीया ए सआ़दत, सफा नं 167_*


                      _*वुज़ू करके सोए*_

     👉🏻 *_मुबाशरत (सोहबत)  के बाद सोने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो पहले अपने मकाम ए मख्सुस (शर्मगाह) को धो ले और वुज़ू करले फिर उस के बाद सो जाए।_*

📚 *_हदीस : उम्मुल मोमीनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदि अल्लाहु तआला अन्हा] फरमाती है.._*

 💎 *_"रसूलुल्लाह ﷺ हालते जनाबत मे (मुबाशरत के बाद) सोने का इरादा फ़रमाते तो अपनी शर्मगाह धो कर नमाज़ जैसा वुज़ू कर लेते थे" (फिर आप सो जाते)_*

📕 *_बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 194, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 129_*


                  _*बीमारी मे मुबाशरत*_

        *👉🏻 _औरत अगर किसी दुख, परेशानी व बीमारी में मुब्तला हो तो उस की सेहत का ख़याल किये बगै़र हरगिज़ सोहबत न करे, वैसे  इन्सानियत का तकाज़ा भी यह है कि दुखी या बीमार इन्सान को और तकलीफ़ न दी जाए बल्कि उसे आराम और सुकून फरहाम करे।_*

             👉🏻 _*औरत कीसी बिमारी मे या तकलीफ मे हो तो उसकी सेहत का खयाल किए बगैर मुजामेअत करना मुनासीब नही! तिब की बाज किताबो मे नक्ल है की.....*_

💫 *_"बुखार की हालत मे मुबाशरत न करे की बदन मे हरारत बस जाती है, और फेफडों के खराब होने का कवी अंदेशा है!"_*


               _*सोहबत मज़े के लिए न हो*_

_💫💫 *हज़रत मौला अली मुश्किलकुशा* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी *"वेसाया"* (वसीयत) मे और *हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली* [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी किताब *"कीमीया-ए-सआ़दत"* में नक़्ल किया है कि--------_

 👉🏻 *_"जब कभी सोहबत करे तो नियत सिर्फ़ मज़ा लेने या शहवत (हवस) की आग बुझाने की न हो बल्कि नियत यह रखे कि जिना से बचूँगा और औलाद सालेह व नेक सीरत पैदा होगीं। अगर इस नियत से सोहबत करेगा तो सवाब पाएंगा।_*

📕 *_वसाया शरीफ, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 255_*

👉🏻  _*हजरत उमर फारुख ए आजम रदि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है.......*_

💫💫 *_"मै निकाह सिर्फ इसलिये करता हु की सालेह औलाद हासील करु!"_*

📕 *_इहया उल उलुम जिल्द 2 सफा नं 44_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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