_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 139)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
_*☝️अक़ीदा : - मुसलमान होने के लिए यह भी ज़रूरी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का इन्कार न करे जो दीन की ज़रूरियात से है अगरचे बाकी बातों का इकरार करता हो । और अगर कोई यह कहे कि सिर्फ जुबान से इन्कार है और दिल में इन्कार नहीं तो वह भी मुसलमान नहीं क्यूँकि बिना किसी खास शरई मजबूरी के कोई मुसलमान कुफ्र का कलिमा निकाल ही नहीं सकता इसलिए कि ऐसी बात वही मुँह पर ला सकता है जिस के दिल में इस्लाम और दीन की इतनी जगह हो कि जब चाहा इन्कार कर दिया और इस्लाम ऐसी तस्दीक का नाम है जिस के खिलाफ हरगिज़ कोई गुन्जाइश नहीं ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 47/48*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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