_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 140)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
_*👉मसअ्ला : - अगर कोई आदमी मजबूर किया गया कि वह ( मआज़ल्लाह ) कोई कुफ्री बात कहे यानी वह मुसलमान अगर कुफ्री बात न कहेगा तो ज़ालिम उसे मार डालेगा या उसके बदन का कोई हिस्सा काट देगा तो उस मुसलमान के लिए इजाज़त है कि मजबूरी में वह जुबान से कुफ्री बात बक दे मगर शर्त यह है कि दिल में उसके वही ईमान बाकी रहे जो पहले था लेकिन ज्यादा अच्छा यही है कि जान चली जाये मगर जुबान से भी कुफ्री बात न बके ।*_
_*👉मसअ्ला : - अमले जवारेह ( यानी हाथ पैर वगैरा से किए जाने वाले अमल या काम ) ईमान के अन्दर दाखिल नहीं है । अलबत्ता ' कुछ ऐसे काम हैं जो बिल्कुल ईमान के खिलाफ हैं उन कामों के करने वालों को काफिर कहा जायेगा । जैसे बुत , चाँद या सूरज को सजदा करने किसी नबी के कत्ल या नबी की तौहीन करने वाले या कुर्आन शरीफ या काबे की तौहीन करने वाले और किसी सुन्नत को हल्का बताने वाले यकीनी तौर पर काफिर हैं । ऐसे ही जुन्नार ( जनेऊ ) बाँधने वाले , सर पर चोटी रखने वाले और कशका ( मज़हबी टीका ) लगाने वाले को भी फुकहाए किराम ने काफ़िर कहा है । ऐसे लोगों के लिए हुक्म है कि वह तौबा कर के दोबारा इस्लाम लायें और फिर अपनी बीवी से दोबारा निकाह करें ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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