_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 169)*_
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_*🕌इमामत का बयान👑*_
_*☝️अकीदा : - सहाबा नबी न थे । फरिश्ते न थे किं मासूम हों । उनमें कुछ के लिए लग़ज़िशें हुई मगर उनकी किसी बात पर गिरफ्त करना अल्लाह और रसूल के ख़िलाफ़ है । अल्लाह तआला ने जहाँ सूरए हदीद में सहाबा की दो किस्में की हैं । यानी फतहे मक्का से पहले के मोमिन और फतहे मक्का के बाद के मोमिन और उनको उन पर फजीलत दी और फरमा दिया कि*_
_*📝तर्जमा : - " सब से अल्लाह ने भलाई का वादा फरमा लिया । " और साथ ही यह भी फरमाया कि*_
_*📝तर्जमा : - " और अल्लाह खुब जानता है जो कुछ तुम काम करोगे ।*_
_*तो जब उसने उनके तमाम आमाल जानकर हुक्म फरमा दिया कि उन सब से हम जन्नत का बे अजाब व करामत और सवाब का वादा कर चुके तो दूसरे को क्या हक रहा कि उनकी किसी बात पर तअन करे । क्या तअन करने वाला अल्लाह से अलग कोई मुस्तकिल हुकूमत काइम करना चाहता है ?*_
_*☝️अकीदा : - हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु मुजतहिद थे उनके मुजतहिद होने के बारे में हजरते अब्दुल्लाह इने अब्बास रदिल्लाहु तआला अन्हुमा ने सहीह बुखारी में बयान फ़रमाया है मुजतहिद से सवाब और खता दोनों सादिर होती हैं । इस बारे में खता की दो किस्में है । खताए ' इनादी ' यह मुजतहिद की शान नहीं । खताए ' इजतेहादी ' यह मुजतहिद से होती है और उसमें उस पर अल्लाह के नजदीक हरगिज़ कोई पकर नहीं । मगर अहकामे दुनिया में खता की दो किस्में हैं । खताए ' मुकर्रर उसके करने वाले पर इन्कार न होगा यह वह खताए इजतेहादी है जिससे दीन में कोई फितना नही होता हो । जैसे हमारे नजदीक मुकतदी का इमाम के पीछे सूरए फातिहा पढ़ना । दूसरी खताए ' मुन्कर ' यह वह खताए इजतेहादी है जिसके करने वाले पर इन्कार किया जायेगा कि उसकी खता फितने का सबब है । हज़रते अमीर मुआविया का हजरते अली से इख्तेलाफ इस किस्म की खता का था । और हुजूर अलैहिस्सलाम ने जो खुद फैसला फरमाया है कि मौला अली की डिगरी और अमीरे मुआविया की मगफिरत ।*_
_*📕बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 67/68*_
_*बाकी अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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