_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 147)*_
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_*( 1 ) कादयानी फिरका*_
_*मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के मानने वालों को कादियानी कहते हैं मिर्जी गुलाम अहमद ने अपनी नुबुब्बत का दावा किया । नबियों की शान में गुस्ताखियाँ कीं । हज़रते ईसा अलैहिस्लाम और उनकी माँ तय्यबा ताहिरा सिद्दीका हज़रते मरयम की शान में वह बेहूदा अल्फाज इस्तेमाल किए जिनसे मुसलमानों की जाने दहल जाती हैं । यही नहीं बल्कि हजरते मूसा अलैहिस्सलाम और हमारे सरकार नबियों के सरदार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन की कुर्आन शरीफ का इन्कार किया और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के खातमुन्नबीय्यीन ( यानी आखिरी नबी ) होने को उसने तसलीम नहीं किया और नबियों को झुटलाया । इनके अलावा और भी उसने सैकड़ों कुफ्र किये हैं कि अगर उन्हें लिखा जाये तो एक दफ्तर चाहिए । शरीअत का कानून है अगर किसी ने किसी एक नबी को झुठलाया तो सबको झुटलाया । कुर्आन शरीफ में आया है कि*_
_*📝तर्जमा : - हजरते नूह अलैहिस्सलाम की कौम ने पैगम्बरों को झुटलाया ।*_
_*मिर्जा ने तो बहुतों की झुटलाया और अपने को नबी से बेहतर बताया । इसीलिए ऐसे आदमी ओर उसके मानने वालों काफिर होने के बारे में किसी मुसलमान को शक हो ही नहीं सकता । और अगर कोई मुसलमान उसकी कही या लिखी बातों को जान के उसके काफिर होने में शक करे वह खुद काफिर है । मिर्जी गुलाम अहमद कादियानी की कुछ लिखी हुई बातें और किताबों के नाम पेज न . के साथ इसलिए लिखी जा रही हैं कि जो देखना चाहे उसकी खबासतों को देख ले । मिर्जा गुलाम अहम कादियानी ने जो खबीस हरकतें की वह उस की इन इबारतों से साबित हैं ।*_
_*1 . खुदाए तआला ने ' बराहीने अहमदीया में इस आजिज़ का नाम उम्मती भी रखा और नबी भी*_
_*📕( इजालए औहाम स न 533 )*_
_*2 . ऐ अहमद ! तेरा नाम पूरा हो जायेगा कब्ल इसके जो मेरा नाम पूरा हो*_
_*📕( अनजाम आथम स न 52 )*_
_*3 . तुझे खुश खबरी हो ऐ अहमद ! तू मेरी मुराद है और मेरे साथ है*_
_*📕( अनजाम आथम स. न. 56)*_
_*4 . तुझको तमाम जहान की रहमत के वास्ते रवाना किया ।*_
_*📕( अनजाम आधम स न 78 )*_
_*नोट : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फजीलत के बारे में कुर्आन शरीफ में अल्लाह तआला ने यह फरमाया है कि*_
_*📝तर्जमा : - " और हमने तुम्हें न भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए।*_
_*इस आयत को मिर्जा ने अपने ऊपर जमाने की कोशिश की है । से अपनी ज़ात मुराद लेता है दाफेउल बला सफा छ : में है*_
_*5 . " मुझको अल्लाह तआला फरमाता है ।*_
_*📝तर्जमा : - " ऐ गुलाम अहमद । तू मेरी औलाद की जगह है तू मुझ से और मैं तुझ से हूँ ।*_
_*📕( दाफिउ बला पैज न 5 )*_
_*6 . हज़रत रसूले . खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इलहाम व वही गलत निकली थी ।*_
_*📕( इज़लाए औहाम पेज न . 688 )*_
_*7 . हजरते मूसा की पेशगोईयाँ भी उस सूरत पर जुहूरपज़ीर ( जाहिर ) नहीं हुई जिस सूरत पर हजरते मूसा ने अपने दिल में उम्मीद बाँधी थी ।*_
_*📕( औहाम पेज न . 8 )*_
_*8 . सूरए बकरह में जो एक कत्ल का जिक्र है कि गाय की बोटियाँ लाश पर मारने से वह मकतूल जिन्दा हो गया था और अपने कातिल का पता दे दिया था यह महज़ मूसा अलैहिस्सलाम धमकी थी और इल्मे मिसमरेज़म था ।*_
_*📕( इजालए औहाम पेज न 775 )*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 51/52*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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