_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 165)*_
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_*🕌इमामत का बयान👑*_
_*🕌इमामत की दो किस्मे है👑 ।*_
_*🕌1 . इमामते सुग़रा : - नमाज़ की इमामत का नाम इमामते सुग़रा है ।*_
_*👑2 इमामते कुबरा : - नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नियाबत यानी काइम मकाम काम करने को इमामते कुबरा कहते हैं । इस तरह कि इमामों से मुसलमानों की तमाम दीनी और दुनियावी ज़रूरतें वाबस्ता हैं । इमाम जो भी अच्छे कामों का हुक्म दें उनकी पैरवी तमाम दुनिया के मुसलमानों पर फर्ज है । इमाम के लिए आज़ाद आकिल , बालिग कादिर और करशी होना शर्त है ।*_
_*⚫राफिजी लोगों का मज़हब यह है कि इमाम के लिये हाशिमी , अलवी और मासूम होना शर्त है । इससे उनका मकसद यह है कि तीनों ख़लीफ़ा जो हक पर हैं उनको खिलाफ़त से अलग करना चाहते हैं । जब कि तमाम सहाबए किराम और हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हुम और हजरते इमाम हसन और हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लहु तआला अन्हुमा ने पहला खलीफा हज़रते अबू बक्र दूसरे खलीफा हजरते उमर तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हुम को माना है । राफिजी मजहब में इमाम की शर्तों में से एक शर्त जो अलवी होने की बढ़ाई गई है उससे हजरत अली भी इमाम नहीं , हो सकते क्यूँकि अलवी उसे कहेंगे जो हज़रते अली की औलाद में से हो । राफिजी मज़हब में इमाम की शर्तों में एक शर्त इमाम का मासूम होना भी है जबकि मासूम होना अम्बिया और फरिश्तों के लिए खास है ।*_
_*🌟मसअ्ला : - इमाम होने के लिए यही काफी नहीं कि खाली इमामत का मुस्तहक हो बल्कि उसे दीनी इन्तिज़ाम कार लोगों ने या पिछले इमाम ने मुकर्रर किया हो ।*_
_*🌟मसअ्ला : - इमाम की पैरवी हर मुसलमान पर फर्ज़ है जबकि उसका हुक्म शरीअत के खिलाफ न हो । बल्कि शरीअत के खिलाफ किसी का भी हुक्म नहीं माना जा सकता ।*_
_*🌟मसअ्ला : - इमाम ऐसा शख्स मुकर्रर किया जाए जो आलिम हो या आलिमों की मदद से काम करे और बहादुर हो ताकि हक बात कहने में उसे कोई खौफ न हो ।*_
_*🌟मसअ्ला : - इमामत औरत और नाबालिग की जाइज़ नहीं । अगर पहले इमाम ने नाबालिग को इमाम मुकर्रर कर दिया हो तो उसके बालिग होने के लिए लोग एक वली मुकर्रर करें कि वह शरीअत के अहकाम जारी करे और यह नाबालिग इमाम सिर्फ रस्मी होगा और हकीकत में वह उस वक़्त तक इमाम का वाली है ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 65*_
_*बाकी अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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