_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 164)*_
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_*4 . गैर मुकल्लिदीन फिरका*_
_*ज़रूरी तम्बीह*_
_*📝तर्जमा : - और नहीं है कोई ताकत और कुव्वत मगर अल्लाह की तरफ़ से ।*_
_*मुख़्तसर यूँ समझिए कि बिदअत दो तरह की हुई एक अच्छी और दूसरी बुरी । बुरी बिदअत तो बहरहाल बुरी है और अगर कोई अच्छी नर्ह बात यानी अच्छी नई बिदअत निकाली जाए तो वह हर्गिज़ बुरी नहीं । बहुत साफ़ मिसाल इसकी यह है कि कुर्आन पाक हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दौर में कागज़ पर यूँ लिखा न था तो क्या कुर्आन का काग़ज़ पर लिखना बिदअत या नया काम कह के हराम करार दिया जाएगा हर्गिज़ नहीं ।*_
_*इसी तरह बहुत से नए जाएज काम ऐसे हैं जिन्हें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नहीं किया मगर बुजुर्गों ने उन्हें अच्छा जान कर शुरू किया । लिहाजा वह अच्छे काम बिदअत नहीं हैं बल्कि अच्छे हैं । यूँ भी शरीअत ने जिस काम का न तो हुक्म दिया न उसे मना किया उसे मुबाह कहते हैं और मुबाह के करने पर न गुनाह है न सवाब । हाँ अगर नियत अच्छी है तो सवाब और नियत अच्छी नहीं तो गुनाह होगा । लिहाज़ा हर नया काम बुरी बिदअत न हुई ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 63*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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