_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 166)*_
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_*🕌इमामत का बयान👑*_
_*☝️अक़ीदा : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद ख़लीफ़ा बरहक और इमामे मुतलक हज़रते अबू बक्र सिद्दीक फिर हज़रते उमर फारूक फिर हज़रते उसमाने गनी फिर हजरते अली 6 महीने के लिये हज़रते इमाम हसन रदियल्लाहु तआला अन्हुम खलीफा हुए । इन बुजूर्गों को खुलफाये राशिदीन और उनकी खिलाफ़त को खिलाफते राशिदा कहते हैं । इन नाइबों ने हुजूर की सच्ची नियाबत का पूरा पूरा हक अदा फरमाया है ।*_
_*☝️अकीदा : - नबियों और रसूलों के बाद हज़रते अबू बक्र इन्सान , जिन्नात , फरिश्ते और अल्लाह तआल । की हर मखलूक से अफजल हैं फिर हज़रते उमर फिर हज़रते उसमान गनी और फिर हज़रते अली रादयल्लाहु तआला अन्हुम जो आदमी मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को पहले या दूसरे खलीफा से अफजल बताये वह गुमराह और बद मजहब है ।*_
_*☝️अकीदा : - अफ़जल का मतलब यह है कि अल्लाह तआला के यहाँ ज्यादा इज्जत वाला हो । इसी को कसरते से सवाब भी ताबीर करते हैं न कि कसरते अज़्र कि बारहा मफजूल के लिए होती है । सय्यदना हज़रते इमाम महदी के साथियों के लिए हदीस शरीफ में यह आया है कि उनके एक के लिये पचास का अज़्र है । सहाबा ने हुजूर से पूछा उन में के पचास का या हम में के । फरमाया बल्कि तुममें के । तो अज्र उनका ज़ाइद हुआ मगर अफजलीयत में वह सहाबा के हमसर भी नहीं हो सकते ज़्यादा होना तो दर किनार । कहाँ इमाम महदी की रिफाकत कहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सहाबियत उसकी मिसाल बिना तश्बीह यूँ समझिये कि सुलतान ने किसी मुहिम पर वज़ीर और कुछ दूसरे अफसरों को भेजा उसकी फतह पर हर अफ़सर को लाख लाख रुपये इनाम के दिये और वज़ीर को खाली उसके मिज़ाज की खुशी के लिए एक पर्वाना दिया तो इनाम दूसरे अफसरों को ज्यादा मिला लेकिन इस इनाम को उस परवाने से कोई निसबत नहीं ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 65/66*_
_*बाकी अगले पोस्ट में*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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