_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 77)*_
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_*✨मोज़ों पर मसह का बयान*_
_*📚हदीस न . 1 : - इमाम अहमद व अबू दाऊद ने मुगीरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की वह फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहिवसल्लम ने मोज़ों पर मसह किया मैंने अर्ज की या रसूलल्लाह हुजूर भूल गए । फरमाया बल्कि तू भूला मेरे रब ने इसी का हुक्म दिया है ।*_
_*📚हदीस न . 2 : - दारे कुतनी ने अबु बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुसफ़िर को तीन दिन तीन रातें और मुकीम को एक दिन एक रात मोज़ों पर मसह करने की इजाजत दी जब कि तहारत के साथ पहने हों ।*_
_*📚हदीस न . 3 : - तिर्मिज़ी और नसई सफवान इब्ने अस्साल रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि जब हम मुसाफिर होते तो हुजूर अलैहिस्सलाम हुक्म फरमाते कि तीन दिन और तीन रातें हम मोज़े न उतारें मगर जिस पर नहाना फ़र्ज़ हो वह ज़रूर उतार दे लेकिन पाखाना पेशाब और सोने के बाद न उतारे ।*_
_*📚हदीस न . 4 : - अबू दाऊद ने रिवायत की कि हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि दीन अगर अपनी राय से होता तो मोज़े का तला ऊपर की निस्बत के मसह में बेहतर होता । ( यानी बजाए ऊपर के नीचे से मसह करते । यहाँ अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म यूँही है ।*_
_*📚हदीस न . 5 : - अबू दाऊद और तिमिज़ी रिवायात करते हैं कि मुगीरा इब्ने शोअबा रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि मैंने रसूलुल्ला सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखा कि मोजों की पुश्त पर मसह फरमाते ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 61*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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