_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 78)*_
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_*✨मोज़ो पर मसह के मसाइल*_
_*💫जो शख्स मोज़ा पहने हुये हो वह अगर वुजू में पाँव धोने के बजाये मसह करे तो जाइज है और पाँव धोना बेहतर है मगर शर्त यह है कि मसह जाइज़ समझे और मसह के जाइज़ होने में बहुत हदीसें हैं जो तवातुर के करीब हैं इसी लिये इसमें की कर्खी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं कि जो मसह को जाइज़ न जाने उसके काफ़िर हो जाने का अन्देशा है । इमाम शैखुल इस्लाम फरमाते हैं कि जो इसे जाइज़ न माने गुमराह है । हमारे इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से अहले सुन्नत व जमाअत की अलामत पूछी गई तो उन्होंने फरमाया कि :*_
_*📝तर्जमा : - यानी हजरत अमीरूल मोमिनीन अबू बक्र सिद्दीक और अमीरूल मोमिनीन फारूके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हुमा को तमाम सहाबा से बुजुर्ग जानना और अमीरुल मोमिनीन उसमाने गनी और अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मुहब्बत रखना और मोज़ो पर मसह करना । इन तीन बातों की तखसीस . इस लिए फ़रमाई कि हज़रत कूफे में थे और वहाँ राफिज़ियों की कसरत थी तो वही अलामत इरशाद फरमाई जो उनका रद्द हैं । इस रिवायत के यह मअ्ना नहीं कि सिर्फ इन तीन बातों का पाया जाना सुन्नी होने के लिए काफी है अलामत शय में पाई जाती है और शय लाज़िमे अलामत नहीं होती जैसे बुखारी शरीफ की हदीस में वहाबियों की अलामत बताई गई है और वह यह है । ( उनकी अलामत सर मुंडाना है । ) इसका - - यह मतलब नहीं कि सर मुंडाना ही वहाबी होने के लिए काफी है । और इमाम अहमद इब्ने हम्बल रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि मेरे दिल में मोजे मसह के जाइज़ होने पर कुछ शक नहीं कि इस में चालीस सहाबा से मुझको हदीसें पहुंची ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 61/62*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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