_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 102)*_
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_*🩸इस्तिहाज़ा के अहकाम*_
_*💫मसअला : - माजूर ने किसी हद्स के बाद वुजू किया और वूजू करते वक़्त वह चीज़ नहीं है जिस सबब माजूर है फिर वूजू के बाद वह उन वाली चीज़ पाई तो वुजू जाता रहा जैसे इस्तिहाजा वाली ने पाखाना पेशाब के बाद वुजू किया और वुजू करते वक़्त खून बन्द था वुजू के बाट आया तो वुजू टूट गया और अगर वुजू करते वक़्त वह उज़्र वाली चीज़ भी पाई जाती थी तो अब वुजू की ज़रूरत नहीं ।*_
_*💫मसअला : - माजूर के एक नथने से खून आ रहा था और वुजू के बाद दूसरे नथने से आया तो वुजू जाता रहा या एक ज़ख्म बह रहा था अब दूसरा बहा यहाँ तक कि चेचक के एक दाने से पानी आ रहा था अब दूसरे दाने से आया तो वुजू टूट गया ।*_
_*💫मसअला : - अगर किसी तरकीब से उज्र जाता रहे या उसमें कमी हो जाये तो उस तरकीब का करना फर्ज है जैसे खड़े होकर पढ़ने से खून बहता है और बैठ कर पढ़े तो न बहेगा ते बैठ कर पढ़ना फर्ज है ।*_
_*💫मसअला : - माजूर को ऐसा उज़्र है जिसके सबब कपड़े नजिस हो जाते हैं तो अगर एक दिरहम से ज़्यादा नजिस हो गया और यह जानता है कि इतना मौका है कि उसे धोकर पाक कपड़े से नमाज पढ़ लेगा तो धो कर नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है और अगर जानता है कि नमाज़ पढ़ते पढ़ते फिर उतना ही नजिस हो जायेगा तो धोना ज़रूरी नहीं उसी से पढ़े अगर्चे मुसल्ले पर भी नजासत लग जाये कुछ हरज नहीं और अगर दिरहम के बराबर है तो पहली सूरत में धोना वाजिब और दिरहम से कम है तो सुन्नत और दूसरी सूरत में न धोने में कोई हरज नहीं ।*_
_*💫मसअला : - इस्तिहाज़ा वाली औरत अगर गुस्ल करके जोहर की नमाज़ आख़िर वक़्त में और अस्र की नमाज़ वुजू करके अव्वले वक़्त में और मगरिब की नमाज़ गुस्ल करके आखिर वक़्त में और इशा की नमाज़ वुजू कर के अव्वले वक़्त में पढ़े और फज़्र की भी गुस्ल करके पढ़े तो बेहतर है और तअज्जुब नहीं कि यह अदब जो हदीस में इरशाद हुआ है उस पर अमल की बरकत से उसके मर्ज़ को भी फाइदा पहुंचे ।*_
_*💫मसअला : - किसी जख्म से ऐसी रतूबत निकले कि बहे नहीं तो न उसकी वजह से वुजू टूटे न माजूर हो और न वह रतूबते नापाक है ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 78*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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