_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 04)*_
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_*जब आदमी मुसलमान हो लिया तो उस के जिम्मे दो किस्म की इबादतें फर्ज़ हैं एक वह जिसका तअल्लुक हाथ पैरों वगैरा से है । दूसरा वह जिसका तअल्लुक दिल से है दूसरी किस्म के अहकाम वगैरह इल्मे सुलूक में बयान होते हैं और पहली किस्म से फिक्ह बहस करता है और इस किताब में मैं पहली किस्म को ही बयान करना चाहता हूँ फिर जिस इबादत को ज़ाहिरी बदन से तअल्लुक है वह दो किस्म की हैं या वह मुआमला कि बन्दे और खास उसके रब के दरमियान है । बन्दों के आपस में किसी काम का बनाव - बिगाड़ नहीं जैसे नमाज़े पंज गाना , रोज़ा कि हर शख्स बिना दूसरे के उन्हें अदा कर सकता है चाहे दूसरे को शिरकत की ज़रूरत हो जैसे नमाजे जमाअत व जुमा व ईदैन में कि बे - जमाअत नामुमकिन है मगर उस से सब का मकसूद सिर्फ मअबूदे बरहक की इबादत है न कि अपने किसी काम का बनाना । दूसरी किस्म वह है कि बन्दों के आपस में तअल्लुकात ही की इस्लाह ( यानी भलाई ) उस में मद्दे नज़र है जैसे निकाह या खरीद व फरोख्त वगैरा । पहली किस्म को इबादत कहते हैं और दूसरी किस्म को मुआमलात । पहली किस्म में अगरचे कोई दुनियावी नफअ बज़ाहिर न हो और मुआमलात में जरूर दुनियावी फायदे ज़ाहिर में मौजूद हैं बल्कि ज़ाहिरी फायदे ही ज़्यादा नज़र आते हैं मगर इबादत दोनों हैं जब कि मुआमलात भी अगर खुदा व रसूल के हुक्म के मुवाफ़िक किये जायें तो सवाब पायेगा वरना गुनाह और अज़ाब का सबब है पहली किस्म यानी इबादत चार हैं पहली नमाज , रोज़ा , हज और जकात , इन सब में सब से ज़्यादा अहम नमाज़ है और यह इबादत अल्लाह को बहुत महबूब है । लिहाज़ा हम को चाहिए कि सब से पहले इसी को बयान करें मगर नमाज़ पढ़ने से पहले नमाज़ी का पाक होना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि पाकी व तहारत नमाज़ की कुंजी है । लिहाज़ा तहारत के मसाइल बयान होंगे उस के बाद नमाज़ के मसाइल बयान होंगे ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 7*_
_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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