_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 05)*_
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_*🚿तहारत यानी पाकी का बयान*_
_*🕌नमाज के लिये पाकी ऐसी जरूरी चीज़ है कि बिना पाकी के नमाज़ होती ही नहीं बल्कि जान बूझ कर बगैर तहारत नमाज अदा करने को हमारे उलमा कुफ्र लिखते हैं । और क्यों न हो कि उस बेवुजू या बेगुस्ल नेमाज़ पढ़ने वाले ने इबादत की बे अदबी और तौहीन की नबी ﷺ ने फ़रमाया है कि जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत है । इस हदीस को इमाम अहमद ने जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया कि एक रोज नबी ﷺ सुबह की नमाज़ में सूरए रूम पढ़ रहे थे , बीच में शुबह हुआ । नमाज के बाद इरशाद फरमाया कि उन लोगों का क्या हाल है जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते हैं और अच्छी तरह तहारत नहीं करते ।उन्हीं की वजह से इमाम को किरअत में शुबह पड़ता है । इस हदीस को नसई ने शबीब इब्ने अबी रूह से उन्होंने एक सहाबी से रिवायत किया कि बगैर कामिल तहारत के नमाज़ पढ़ने की यह नहूसत है तो बे तहारत नमाज़ पढ़ने की नहूसत की क्या पूछना । तिर्मिज़ी में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तहारत निस्फ ( आधा ) ईमान है । यह हदीस हसन है ।*_
_*🚿तहारत की दो किस्में है : - 1 . सुगरा 2 . कुबरा . तहारते सुगरा वुजू है । और तहारते कुबरा गुस्ल । जिन चीजों में सिर्फ वुजू लाज़िम होता है उन को हदसे असगर और जिन चीजों से नहाना फर्जी उन को हदसे अकबर कहा जाता है । अब आप के सामने फिक्ह में बोले जाने वाले कुछ अलफाल की तारीफ लिखी जाती है ।*_
_*👉🏻फर्जे एअतिकादी : - वह फर्ज है जो दलीले कतई से साबित हो यानी ऐसी दलील से साबित हो जिसमें कोई शक न हो उसका इन्कार करने वाला हनफी इमामों के नज़दीक मुतलक काफिर है और अगर यह एअतिकादी फर्ज आम खास पर खुला हुआ दीने इस्लाम का मसला हो और उसका कोई इन्कार करे तो वह ऐसा काफिर है कि जो उसके कुफ्र में शक करे वह खुद काफिर है । बहरहाल जो किसी फर्जे एअतिकादी को बिना किसी सही शरई मजबूरी के जानबूझ कर एक बार भी छोड़े वह फासिक गुनाहे कबीरा का मुरतकिब और जहन्नम के अज़ाब का मुस्तहिक है जैसे नमाज रुकू सजदा ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 7/8*_
_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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