_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 03)*_
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_*🕋अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है*_
_*📝तर्जमा : - " और आदमी मैंने इसी लिए पैदा किये कि वह मेरी इबादत करें " । हर थोड़ी सी अक्ल वाला भी जानता है जो चीज जिस काम के लिए बनाई जाये उस काम में न आये तो बेकार है तो इन्सान जो अपने खालिक और मालिक को न पहचाने उस की बंदगी व इबादत न करे वह नाम का आदमी है हकीकतन वह आदमी नहीं बल्कि एक बेकार चीज़ है , तो मालूम हुआ कि इबादत ही से आदमी आदमी है और इसी में दुनिया और आखिरत की भलाई है । लिहाजा हर इन्सान के लिए इबादत की किस्में , अरकान , शराइत और अहकाम का जानना जरूरी है बगैर इल्म के अमल नामुमकिन है । इसी वजह से इल्म सीखना फर्ज है इबादत की अस्ल ईमान है , बगैर ईमान इबादत बेकार कि जड़ ही नहीं तो सब बेकार , दरख्त उसी वक़्त फल फूल लाता है कि उस की जड़ काइम हो जड़ जुदा हो जाने के बाद आग की खुराक होजाता है इसी तरह काफिर लाख इबादत करे उस का सारा किया धरा बर्बाद और वह जहन्नम का ईंधन ।*_
_*🕋अल्लाह तआला फरमाता है_*
_*📝तर्जमा : - " काफिरों ने जो कुछ किया हम उस के साथ यूँ पेश आये कि उसे बिखरे हुए ज़रें की । तरह कर दिया ।*_
_*📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 6/7*_
_*🤲 तालिबे दुआँ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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