_*अनवारे शरिअत (पोस्ट न. 08)*_
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*﷽*
_*सवाल : - शिर्क किसे कहते हैं ?*_
_*जवाब : - खुदायेतआला की ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक ठहराना शिर्क है । ज़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि दो या दो से ज़ियादा खुदा माने जैसे ईसाई कि तीन खुदा मान कर मुश्रिक हुए और जैसे हिन्दू कि कई खुदा मानने के सबब मुश्रिक हैं । और सिफ़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि खुदायेतआला की सिफ़त की तरह किसी दूसरे के लिए कोई सिफ़त साबित करे मसलन सुनना और देखना वगैरा जैसा कि खुदायेतआला के लिए बगैर किसी के दिए जाती तौर पर साबित है उसी तरह किसी दूसरे के लिए सुनना और देखना वगैरा जाती तौर पर माने कि बगैर खुदा के दिए उसे यह सिफ़तें खुद हासिल हैं तो शिर्क है और अगर किसी दूसरे के लिए अताई तौर पर माने कि खुदाये तआला ने उसे यह सिफ़तें अता की हैं तो शिर्क नहीं जैसा कि अल्लाहताला ने खुद इन्साफ़ के बारे में पारा 29 रुकू 19 में फ़रमाया जिसका तर्जमा यह है कि हमने इन्सान को सुनने वाला , देखने वाला बनाया ।*_
_*सवाल : - कुफ्र किसे कहते हैं ?*_
_*जवाब : - ज़रूरियाते दीन में से किसी एक बात का इन्कार करना कुफ़्र है ज़रूरियाते दीन बहुत हैं उनमें से कुछ यह है खुदायेतआला को एक और वाजिबुलवजूद मानना , उसकी ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक न समझना , जुल्म और झूट वगैरा तमाम उयूब से उसको पाक मानना , उसके मलाइका और उसकी तमाम किताबों को मानना , कुरान मजीद की हर आयत को हक समझना , हुज़र सैय्यिदे आलम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम और तमाम अंबियायेकिराम की नबूवत को तस्लीम करना उन सबको अज़मत वाला जानना , उन्हें ज़लील और छोटा न समझना उनकी हर बात जो क़तई और यक़ीनी तौर पर साबित हो उसे हक़ जानना हुजूर अलैहिस्सलाम को खातमुन्नबीयीन मानना उनके बाद किसी नबी के पैदा होने को जाइज़ न समझना , कियामत हिसाब व किताब और जन्नत व दोज़ख़ को हक़ मानना , नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात की फ़रज़ीयत को तस्लीम करना , जिना , चोरी और शराब नोशी वगैरा हराम क़तई की हुरमत का इतिक़ाद करना और काफ़िर को काफ़िर जानना वगैरा ।*_
_*सवाल : - किसी से शिर्क या कुफ्र हो जाए तो क्या करे ?*_
_*जवाब : - तौबा और तजदीदे ईमान करे बीवी वाला हो तो तजदीदे निकाह करे और मुरीद हो तो तजदीदे बैअत भी करे ।*_
_*सवाल : - शिर्क और कुफ्र के अलावा कोई दूसरा गुनाह हो जाए तो मुआफ़ी की क्या सूरत है ?*_
_*जवाब : - तौबा करे खुदायेतआला की बारगाह में रोये गिड़गिड़ाये अपनी गलती पर नादिम व पशीमा हो और दिल में पक्का झहद करे कि अब कभी ऐसी गलती न करूंगा सिर्फ जुबान से तौबा तौबा कह लेना तौबा नहीं है ।*_
_*सवाल : - क्या हर किस्म का गुनाह तौबा से मुआफ़ हो सकता है !*_
_"जवाब : - जो गुनाह किसी बन्दा की हक़तलफ़ी से हो मसलन किसी का माल गसब कर लिया , किसी पर तहमत लगाई या जुल्म किया तो इन गुनाहों की मुआफ़ी के लिए ज़रूरी है कि पहले उस बन्दे का हक़ वापस किया जाए या उससे मुआफ़ी मांगी जाए फिर खुदायेतझाला से तौबा करे तो मुआफ हो सकता है । और जिस गुनाह का तअल्लुक़ किसी बन्दा की हक़तलफ़ी से नहीं है बल्कि सिर्फ खुदायेतआला से है उसकी दो किस्में हैं एक वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ़ हो सकता है जैसे शराब नोशी का गुनाह और दूसरे वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ नहीं हो सकता है जैसे नमाजों के न पढ़ने का गुनाह इसके लिए ज़रूरी है कि वक़्त पर नमाज़ों के अदा न करने का जो गुनाह हुआ उससे तौबा करे और नमाजों की कज़ा पढ़े अगर आखिरे उम्र में कुछ कज़ा रह जाए तो उनके फ़िदयह की वसीयत कर जाए ।*_
_*📗अनवारे शरिअत, सफा 18/19)20/21*_
_*🖋️ क़मर रज़ा ह़नफ़ी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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