_*ताजिया'दारी हराम है*_
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_*ताजिया निकालना, देखना, जुलूस में शामिल होना सरासर खुराफाती अमल!*_
_*अल्लाह सुब्हानहू व तआला का फरमान मुबारक है👇🏻*_
_*“किसी ऐसी चीज की पैरवी ना करो (यानि उसके पीछे न चलो , उसकी इत्तेबा ना करो) जिसका तुम्हें इल्म ना हो , यकीनन तुम्हारे कान, आँख, दिमाग (की कुव्वत जो अल्लाह ने तुमको अता की है) इसके बारे में तुमसे पूछताछ की जाएगी”*_
_*📕 सूर:बनी इस्राईल 17, आयत 36*_
_*नबी ए करीम (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) ने फ़रमाया “इल्म सीखना हर मुसलमान मर्द-औरत पर फ़र्ज है"*_
_*📕 इब्ने माजा हदीस न. 224*_
_*यानि इतना इल्म जरुर हो कि क्या चीज शरीअत में हलाल है क्या हराम और क्या अल्लाह को पसंद है क्या नापसंद , कौन से काम करना है और कौन से काम मना है और कौन से ऐसे काम है जिनको करने पर माफ़ी नहीं मिल सकती!*_
_*अब लोगों का क्या हाल है एक तरफ तो अपने आपको मुसलमान भी कहते है दूसरी तरफ काम इस्लाम के खिलाफ़ करते है और जब कोई उनको रोके तो उसको कहते है कि ये काम तो हम बाप दादा के ज़माने से कर रहे हैं, यही वो बात है जिसको अल्लाह ने कुरआन में भी फरमा दिया सूर: अलबकर आयत 170 में-*_
_*"और जब कहा जाये उनसे की पैरवी करो उसकी जो अल्लाह ने बताया है तो जवाब में कहते है कि हम तो चलेंगे उसी राह जिस पर हमारे बा दादा चलें, अगर उनके बाप दादा बेअक्ल हो और बे-राह हो तब भी (यानि दीन की समझ बूझ ना हो तब भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे?)*_
_*हक़ीकत खुराफ़ात में खो गई! जी हाँ मुहर्रम की भी हकीकत खुराफ़ात में खो गई उलमाओं के फतवे और अहले हक़ लोगों के बयान मौजूद है फिर भी मुहर्रम की खुराफ़ात पर लोग यही दलील देते है कि यह काम हम बाप दादों के ज़माने से करते आ रहे हैं.? बेशक करते होंगे लेकिन कौन से इल्म की रौशनी में जाहिर है वो इल्म नहीं बेईल्मी होगी क्योंकि इल्म तो इस काम को मना कर रहा है! आप खुद पढ़े*_
_*हजरत सय्यिदना अब्दुल क़ादिर जीलानी (Radiallahu Ta'ala Anhu) का फ़तवा👇🏻*_
_*अगर इमाम हुसैन (Radiallahu Ta'ala Anhu) की शहादत के दिन को ग़म का दिन मान लिया जाए तो पीर का दिन उससे भी ज्यादा ग़म करने का दिन हुआ क्यूंकि रसूले खुदा (Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam) की वफात उसी दिन हुई है!*_
_*📕 गुन्यतुत्तालिबीन , पेज 454*_
_*हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी अलैहिर्रहमा का फ़तवा👇🏻*_
_*1- अलम, ताजिया, अबरीक, मेहंदी, जैसे तरीके जारी करना बिदअत है, बिदअत से इस्लाम की शान नहीं बढती, ताजिया को हाजत पूरी करने वाला मानना जहालत है, उसकी मन्नत मानना बेवकूफी, और ना करने पर नुकसान होगा ऐसा समझना वहम है, मुसलमानों को ऐसी हरकत से बचना चाहिये!*_
_*📕 रिसाला मुहर्रम व ताजियादारी, पेज 59*_
_*2). ताजिया आता देख मुहं मोड़ ले, उसकी तरफ देखना भी नहीं चाहिये!*_
_*📕 इर्फाने शरीअत, पहला भाग पेज 15*_
_*3). ताजिये पर चढ़ा हुआ खाना न खाये, अगर नियाज़ देकर चढ़ाये या चढ़ाकर नियाज़ दे तो भी उस खाने को ना खाए उससे परहेज करें!*_
_*📕 पत्रिका ताजियादारी ,पेज 11*_
_*मसला:- किसी ने पूछा हज़रत क्या फरमाते हैं, इन अमल के बारे में*_
_*सवाल 1- कुछ लोग मुहर्रम के दिनों में न तो दिन भर रोटी पकाते है और न झाड़ू देते है, कहते है दफ़न के बाद रोटी पकाई जाएगी!*_
_*सवाल 2- मुहर्रम के दस दिन तक कपड़े नहीं उतारते!*_
_*सवाल 3- माहे मुहर्रम में शादी नहीं करते!*_
_*अलजवाब:- तीनों बातें सोग की है और सोग हराम है*_
_*📕 अहकामे शरियत ,पहला भाग, पेज 171*_
_*हज़रत मौलाना मुहम्मद इरफ़ान रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा, ताजिया बनाना और उस पर फूल हार चढ़ाना वगेरह सब नाजायज और हराम है!*_
_*📕 इरफाने हिदायत, पेज 9*_
_*हज़रत मौलाना अमजद अली रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा👉🏻 अलम और ताजिया बनाने और पीक बनने और मुहर्रम में बच्चों को फ़क़ीर बनाना बद्दी पहनाना और मर्सिये की मज्लिस करना और ताजियों पर नियाज़ दिलाने वगैरह खुराफ़ात है उसकी मन्नत सख्त जहालत है ऐसी मन्नत अगर मानी हो तो पूरी ना करें!*_
_*📕 बहारे शरियत, हिस्सा 9, पेज 35, मन्नत का बयान*_
_*ताजियादारी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी की नज़र में👉🏻 ये ममनूअ् है, शरीअत में इसकी कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअत इसके साथ की जाती है सख्त नाजायज है, ताजियादारी में ढोल बजाना हराम है!*_
_*📕 फतावा रिजविया, पेज 189, जिल्द 1, बहवाला खुताबते मुहर्रम*_
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