_*काश महशर में जब उनकी आमद हो और*_
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_*किसी भाई का ये सवाल आया है कि क्या आलाहज़रत को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़यामत में आने पर शक है,ऐसा नहीं है सबसे पहले मैं सरकारे आलाहज़रत के नातिया दीवान हिदायके बख्शिश से चन्द कलाम के टुकड़े पेश करता हूं फिर आगे तब्सिरा करता हूं,आप फरमाते हैं*_
_*01. आज ले उनकी पनाह आज मदद मांग उनसे*_
_*फिर ना मानेंगे क़यामत में अगर मान गया*_
_*02. रज़ा पुल से अब वज्द करते गुज़रिये*_
_*कि है रब्बे सल्लिम सदाये मुहम्मद*_
_*03. मुजरिम को बारगाहे अदालत में लाये हैं*_
_*तकता है बेकसी में तेरी राह, ले खबर*_
_*04. नय्यरे हश्र ने एक आग लगा रखी है*_
_*तेज़ है धूप मिले सायये दामां हमको*_
_*05. मुजरिमों को ढूंढ़ती फिरती है रहमत की निगाह*_
_*तालये बरगश्ता तेरी साज़गारी वाह वाह*_
_*06. मैं मुजरिम हूं आक़ा मुझे साथ लेलो*_
_*कि रस्ते में हैं जा बजा थाने वाले*_
_*07. खुदाये क़ह्हार है गज़ब पर खुले हैं बदकारियों के दफ्तर*_
_*बचा लो आकर शफीये महशर तुम्हारा बन्दा अज़ाब में है*_
_*08. अर्शे हक़ है मसनदे रिफअत रसूल अल्लाह की*_
_*देखनी है हश्र में इज़्ज़त रसूल अल्लाह की*_
_*टूट जायेंगे गुनाहगारों के फौरन क़ैदो बन्द*_
_*हश्र को खुल जायेगी ताक़त रसूल अल्लाह की*_
_*09. पेशे हक़ मुज़्दह शफाअत का सुनाते जायेंगे*_
_*आप रोते जायेंगे हमको हसाते जायेंगे*_
_*खाक़ अफ्तादो बस उनके आने ही की देर है*_
_*खुद वो गिरकर सज्दा में हमको उठाते जायेंगे*_
_*10. लो वो आया मेरा हामी मेरा गमख्वार उमम*_
_*आ गई जां तने बेजां में ये आना क्या है*_
_*ये समां देखके महशर में उठे शोर कि वाह*_
_*चशमे बददूर हो, क्या शान है रुत्बा क्या है*_
_*और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है मगर इतना ही ये समझाने के लिए काफी है कि आलाहज़रत को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के क़यामत में आने पर कोई शक नहीं है, फिर ये काश क्यों, तो इसका जवाब ये है कि कभी कभी बात करने वाला इस तरह बात करता है कि अगर उसको सही से ना समझा जाए माने कुछ का कुछ हो जाता है जैसे किसी ने कहा कि "मैं कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा" ज़ाहिर सी बात है इसका साफ सुथरा माने तो यही है जो कि कहा गया लेकिन अगर उसने उसके बाद ये कह दिया कि "जब तक कि तुम ना बुलाओ" तो अब बताइये कि क्या उसका वही माने अब भी रह जायेगा, नहीं बल्कि पूरी बात ही बदल गयी, अब आईये उस कलाम को समझते हैं, असल में आलाहज़रत की वो बात सिर्फ उस शेअर में ही पूरी नहीं हुई बल्कि बाद का शेअर भी उसी का जुज़ है, पढ़िये*_
_*काश महशर में जब उनकी आमद हो और*_
_*भेजें सब उनकी शौक़त पे लाखों सलाम*_
_*मुझसे खिदमत के क़ुदसी कहें हां रज़ा*_
_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_
_*काश ब मानी हसरत के बोला जाता है मगर आलाहज़रत की ये हसरत हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के आने पर नहीं है क्योंकि वो तो यक़ीनी है बल्कि ये हसरत कुछ और बात की है, शेअर को अब फिर से पढ़िये*_
_*महशर में जब उनकी आमद हो और*_
_*भेजें सब उनकी शौक़त पे लाखों सलाम*_
_*काश* मुझसे खिदमत के क़ुदसी कहें हां रज़ा_
_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_
_*अब इस शेअर का मतलब समझ लीजिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के आने पर तमाम अंबिया फरिश्ते जिन्नो इन्स सब ही आपकी बारगाह में सलाम पेश करेंगे तो आप की तमन्ना ये है कि काश उस वक़्त क़ुदसी यानि फरिश्ते मुझसे खिदमत के यानि मुझसे अर्ज़ करें और कहें कि "ऐ रज़ा वही सलाम सुना दो जो सारी ज़िन्दगी तुम और तुम्हारे ग़ुलाम पढ़ते रहे, कौन सा सलाम, वही*_
_*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम*_
_*शम्ये बज़्मे हिदायत पे लाखों सलाम*_
_*मुल्के सुखन की शाही तुमको रज़ा मुसल्लम*_
_*जिस सिम्त आ गए हो सिक्के बिठा दिए हैं*_
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