_*शिर्क की 2 किस्म है*_
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_*1. शिर्के अकबर - यानि अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत करना*_
_*2. शिर्के असगर - यानि अपने आमाल पर रियाकारी (दिखावा) करना*_
_*📕 अलइत्हाफ, जिल्द 8, सफ़ह 263*_
_*हदीस मे आता है की कुछ लोग मैदान महशर मे अपने नमाज़, रोज़ा, हज, जक़ात व दीगर आमाल के साथ आएंगे मगर जब वो अपने आमाल पेश करेंगे तो मौला कबूल ना फरमायेगा बल्की उनसे कहेगा की तुमने नमाज़ इसलिए पढी की लोग तुमको नमाज़ी कहें रोजे इसलिये रखे की लोग तुम्हें रोज़ेदार कहें हज इसलिये की लोग तुम्हें हाजी कहें इबादते इसलिये की की तुम्हें नेक और परहेज़गार कहें जिनको दिखाने के लिये तुमने ये इबादते की जाकर उसी से अपना अज्र ले लो इस तरह वो बंदा खायाब ओ खासिर हो जाएगा और बिल आखीर जहन्नम मे डाल दीया जायेगा..!*_
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, पेज 104*_
_*मौला से दुआ है की हमको हर तरह की रियाकारी से महफूज रखे-आमिन*_
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