Monday, October 15, 2018


               _*"हुज़ूर दाफे-उल-बला हैं"*_
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_*हर वह बात जिस से हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का इख़्तियार साबित हो या नब्वी कमालात पर दलालत करे वहाबिया इसका इंकार करते हैं ! और हुज़ूर की तंक़ीस व तौहीन के दरपे हो जाते हैं हालांकि अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को उलूहीयत के सिवा हर वस्फ़े कमाल अता फरमाया है !*_

_*☝🏻अहले सुन्नत व जमाअत का अक़ीदा है कि हुज़ूर दाफ़े-उल-बला हैं अपनी उम्मत से बलाओं को टालते है, बल्कि हुज़ूर के गुलामों में भी हुज़ूर के वसीले से ये वस्फ़ है कि वह मुमिनीन से बलाओं को दूर करते है !*_

_*वहाबिया के हसद व जलन का आलम यह है कि वह कहतें है कि दरूदे ताज पढ़ना जाईज़ नही (माज़अल्लाह) क्योंकि इसमें हुज़ूर के लिए "दाफ़े-उल-बला वल-वबा" के जुमले वारिद हुऐ है !*_

_*📜इस मज़्मुन के मुतअल्लिक़ एक सवाल के जवाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्देसा सिर्रहू फरमाते है*_

_*💫रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम बेशक दाफ़े-उल-बला है ! उनकी शाने अज़ीम तो अरफ़ा व आला है उनके ग़ुलाम दफ़अ बला फरमाते है !*_

_*🌹हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है मेरा नाम "उहीद" इस लिए हुआ कि मैं अपनी उम्मत से आतिशे दोज़ख़ को दफ़अ फरमाता हूं !*_

_*📕 इब्ने असाकिर*_

_*🔥दोज़ख़ से बदतर और क्या बला होगी जिसके दाफ़े हुज़ूर अक़्दस हो !*_

_*हुज़ूर फरमाते है कि मैं जिनका मददगार हूँ अली मुर्तज़ा उनके मददगार हैं कि हर मकरूह को उससे दफ़ा करते है !*_

_*📕 फतावा रज़्वीया, जिल्द 11, सफ़ा 81*_
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