Wednesday, October 10, 2018



                       _*सवानेह हयात*_
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_*1 सफर*_

_*हज़रत वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु, देवा शरीफ*_

_*हज़रत सय्यदना अबुल क़ासिम शाह इस्माईल हसन, मारहरा शरीफ*_

_*3 सफर*_

_*हज़रत ख्वाजा दाना सूरती क़ुद्देसु सिर्रहु*_

_*5 सफर*_

_*रईसुल क़लम हज़रत अल्लामा अर्शदुल क़ादरी अलैहिर्रहमा*_

_*हज़रत पीर मक़बूल शाह कश्मीरी, हांगल शरीफ*_

_*6 सफर*_

_*हज़रत शारेह बुखारी अलैहिर्रहमा, घोसी*_

_*हज़रत वारिस पाक*_

_*आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 1234 हिजरी देवा शरीफ में पैदा हुए, आपके वालिद का नाम सय्यद क़ुर्बान अली और वालिदा का नाम सय्यदा बीबी सकीना उर्फ चांदन बीबी था*_

_*2 साल की उम्र में बाप का साया सर से उठ गया और 3 साल की उम्र में वलिदा भी चल बसीं तब आपकी दादी ने आपकी कफालत की*_

_*5 साल की उम्र से आपकी तअलीम शुरू हुई, हज़रत अमीर अली शाह से 2 साल में क़ुर्आन हिफ़्ज़ कर लिया और मौलवी इमाम अली से दर्से निज़ामिया की किताबें आप पढ़ ही रहे थे कि 8-10 साल की उम्र में आपकी दादी का भी इंतेकाल हो गया, उसके बाद आपके बहनोई हज़रत खादिम अली शाह कादरी चिश्ती आपको लखनऊ ले आये और तअलीम का सिलसिला बा दस्तूर जारी रहा, हज़रत खादिम अली शाह हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमतो वर्रिज़वान के शागिर्द थे उन्होंने निहायत दिलजोई से आपको दर्स दिया यही बाद में आपके मुर्शिद भी हुये, कुछ किताबें हज़रत बुलंद शाह कुद्देसु सिर्रहु से भी पढ़ी*_

_*इसमें इख्तिलाफ है कि आपकी तअलीम का नतीजा क्या हुआ बअज़ हज़रात कहते हैं कि आपने फराग़त हासिल की और बअज़ फरमाते हैं कि जोशे इश्क़ ने आप पर ग़लबा किया जिसकी वजह से किताबें छोड़कर आपने 1253 हिजरी में पैदल ही हरमैन शरीफ़ैन जाने का क़सद किया, आपने 3 बार अरब शरीफ का दौरा किया और बार कई कई साल के बाद वापस तशरीफ लाये रिवायत में है कि आपने 7 या 11 हज किये*_

_*आपने कभी निकाह नहीं किया और पहले सफर हज से ही आपने आम लिबास तर्क कर दिया और हमेशा एहराम पोश रहे, ज़र्द रंग की एक बग़ैर सिली हुई लुंगी पहनते और ऊपर उसी की तरह दूसरी लुंगी ओढ़ते और निहायत ही सादगी के साथ रहते*_

_*रिवायत में आता है कि आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक मर्तबा उधर से गुज़र रहे थे तो फरमाया कि चलकर हज़रत से मुलाकात करते हैं, जैसे ही हज़रत वारिस पाक ने आपको आता देखा फौरन अपनी मसनद छोड़कर आपकी तरफ दौड़े और अपने सीने से लगा लिया, अपनी मसनद पर बिठाया पहले तो आलाहज़रत ने इंकार किया तो फरमाते हैं कि तुम तो आलाहज़रत हो मसनद पर तो तुम्ही बैठोगे, नमाज़ का वक़्त हुआ तो हज़रत वारिस पाक ने आलाहज़रत को ही मुसल्ले पर खड़ा किया हज़रत वारिस पाक और तमाम हाज़ेरीन मुक़्तदी बने उसके बाद काफी देर तक दोनों हज़रात पुश्तो ज़बान में गुफ्तुगू करते रहे मगर किसी को कुछ समझ न आया, और आलाहज़रत को रुखसत करने काफी दूर तक तशरीफ लाये*_

_*1323 हिजरी में आपका विसाल हुआ और देवा शरीफ में ही आपका मज़ार जलवा गाहे आम है*_

_*करामत - खुद वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान फरमाते हैं कि एक मर्तबा हज के मौक़े पर मैंने एक बुढ़िया को देखा जो कि गारे सौर में बैठी रो रही थी, मालूम करने पर पता चला कि उसका इकलौता बेटा इंतेक़ाल कर गया मैं गया और उसको सब्र करने की तलकीन की तो कहने लगी हकीम साहब अब इस वीराने में सब्र कहां तलाश करूं और मेरे पास पैसा भी नहीं है कि सब्र खरीद लूं इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरे बेटे को कोई दवा खिलादो ताकि ज़िंदा हो जाये, आपने लड़के के मुंह से कपड़ा हटाया और ठंडा पानी छिड़क दिया उसने फौरन आंख खोल दी मां अपने बेटे से लिपट गयी तो आप वहां से चल पड़े और अपने साथियों से फरमाते हैं कि शायद इसके बेटे को सकता हो गया था*_

_*करामत - एक मर्तबा आपके एक मुरीद मौलवी मुहमम्द यहया साहब वारसी पटना से अपनी बीमार बेटी को छोड़कर आपकी ज़ियारत करने को चले आये, उधर दूसरे ही दिन तार आया कि लड़की का इंतेकाल हो गया है जब हज़रत वारिस पाक को खबर हुई तो उनको बुलाया और फरमाया कि मौलवी साहब परेशान ना हों अक्सर मरीज़ को सकता हो जाता है और तबीब समझता है कि मरीज़ मर गया, उस वक़्त तो हाज़ेरीन को उनकी बात समझ में ना आई कि हज़रत ने परदे में क्या तसर्रुफ फरमाया है मगर तीसरे ही दिन फिर खबर आई कि लड़की 6 घंटे बाद ही ज़िंदा हो गई तब लोगों को आपकी बात का एहसास हुआ*_

_*📕 बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सफह 188-191*_
_*📕 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा, सफह 146*_
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