_*फैज़ाने सैय्यदना अमीरे मुआविया (पार्ट- 19)*_
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*_ताबेेई का मुकाबला सहाबी से करते हो_*
_*🌹हज़रत सैय्यदना मुआफ़ा बिन इमरान रदिअल्लाहो तआला अन्ह की बारगाह में सवाल किया : हज़रत सैय्यदना अमीरे मुआविया रदिअल्लाहो तआला अन्ह अफ़ज़ल हैं या हज़रत सैय्यदना उमर बिन अब्दुल अ़ज़ीज़ रदिअल्लाहो तआला अन्ह....? ये सवाल सुनते ही आपके चेहरे पर जलाल के आसार नुमूदार हुए और निहायत सख़्ती से इरशाद फ़रमाया : क्या तुम एक ताबेई का सहाबी से मुक़ाबला करते हो? हज़रत सैय्यदना अमीरे मुआविया रदिअल्लाहो तआला अन्ह तो नबिएे करीम ﷺ के सहाबी हैं, आप के ससुराली रिश्तेदार, नबिएे करीम ﷺ के कातिब और अल्लाह की तरफ से अता़कर्दा़ वह्'य के अमीन थे।*_
_*📕 अलबेदायाह वन नेहायाह, 60 हिजरी, व हाज़ेहि तरजूमातो मोआविया, जिल्द नम्बर 5, पेज नम्बर 643*_
*_अह्'ले बैत के ख़िदमतगार_*
_*🌹हज़रत सैय्यदना दाता गंज बख़्श सैय्यद अली हिजवेरी रदिअल्लाहो तआला अन्ह फ़रमाते हैं : हज़रत सैय्यदना अमीरे मुआविया रदिअल्लाहो तआला अन्ह को हज़रत सैय्यदना इमामे हुसैन रदिअल्लाहो तआला अन्ह से ऐसी मोहब्बत थी कि आपको बेश क़िमती नज़राने पेश करने के बावजूद उनसे माज़िरत फ़रमाया करते थे : "फ़िलहाल मैं आपकी सह़ीह़ ख़िदमत नहीं कर सका, आइंदा मज़ीद नज़राना पेश करूंगा।"*_
_*📕 कशफुल महजूब, बाबो फि ज़िकरे अईम्मतेहिम मीन अहलिल बैत, पेज नम्बर 77*_
_*हमारे इमाम ने कितनी प्यारी बात कही है :*_
*_वो जो न थे तो कुछ न था, वो जो न हों तो कुछ न हो..._*
*_जान हैं वो जहांन की, जान है तो जहांन है..._*
_*एक जगह और इरशाद फ़रमाते हैं आला हज़रत :*_
*_ज़मीनों ज़मां तुम्हारे लिए, मकीनों मकां तुम्हारे लिए._*
*_चुनीनो चुनां तुम्हारे लिए, बने दो जहां तुम्हारे लिए..._*
*_दहन में ज़बा तुम्हारे लिए, बदन में है जां तुम्हारे लिए..._*
*_हम आए यहां तुम्हारे लिए, उठें भी वहां तुम्हारे लिए..._*
_*📮जारी रहेगा.....*_
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