Monday, December 3, 2018



                   _*वसीला : (पार्ट- 3)*_
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_*ⓩ पिछली 2 पोस्ट में क़ुर्आन और हदीस से वसीले के हक़ होने की दलील दी अब फुक़्हा के कुछ क़ौल और खुद वहाबियों देवबंदियों की किताब से वसीले का सबूत पेश है,इमामुल अइम्मा हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में युं नज़्र फरमाते हैं कि*_

_*1⃣  आप वो हैं कि जिनका वसीला लेकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम कामयाब हुए हालांकि वो आपके बाप हैं*_

_*📕 क़सीदये नोमानिआ, सफह 12*_

_*ⓩ हज़रत इमाम मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बनी अब्बास के दूसरे खलीफा अबू जाफर मंसूर से फरमाते हैं कि*_

_*2⃣  तुम अपना मुंह हुज़ूर की जाली की तरफ करके ही उनके वसीले से दुआ करो और उनसे मुंह ना फेरो क्योंकि हुज़ूर हमारे और तुम्हारे बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिए भी वसीला हैं*_

_*📕 शिफा शरीफ, सफह 33*_

_*ⓩ हज़रत इमाम शाफ़ई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु ताला अन्हु की मज़ारे अक़दस के बारे में फरमाते हैं की*_

_*3⃣  हज़रते इमामे आज़म की मज़ार क़ुबूलियते दुआ के लिए तिर्याक है*_

_*📕 तारीखे बग़दाद, जिल्द 1, सफह 123*_

_*ⓩ हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह से हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में फरमाते हैं कि*_

_*4⃣  हज़रत इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ऐसे हैं जैसे कि लोगों के लिए सूरज इसलिए मैं उनसे तवस्सुल करता हूं*_

_*📕 शवाहिदुल हक़, सफह 166*_

_*ⓩ हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*5⃣  जब तुम अल्लाह से कुछ तलब करो तो मेरे वसीले से मांगो*_

_*📕 बेहिज्जतुल असरार, सफह 23*_

_*ⓩ ये तो हुई हमारे फुक़्हा की बातें अब वहाबियों के भी कुछ क़ौल मुलाहज़ा फरमायें, अशरफ अली थानवी ने लिखा कि*_

_*6⃣  तवस्सुल दुआ में मक़बूलाने हक़ का ख्वाह वो ज़िंदा हो या वफात शुदा बेशक दुरुस्त है*_

_*📕 फतावा रहीमिया, जिल्द 3, सफह 6*_

_*ⓩ रशीद अहमद गंगोही ने लिखा कि*_

_*7⃣  हुज़ूर को निदा करना और ये समझना कि अल्लाह आप पर इंकेशाफ फरमा देता है हरगिज़ शिर्क नहीं*_

_*📕 फतावा रशीदिया, सफह 40*_

_*ⓩ हुसैन अहमद टांडवी ने लिखा कि*_

_*8⃣  आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से तवस्सुल ना सिर्फ वजूदे ज़ाहिरी में बल्कि विसाल के बाद भी किया जाना चाहिय*_

_*📕 मकतूबाते शेखुल इस्लाम, जिल्द 1, सफह 120*_

_*ⓩ क़ासिम नानोतवी ने लिखा कि*_

_*9⃣  मदद कर ऐ करमे अहमदी कि तेरे सिवा*_
_*नहीं है क़ासिम बेकस का कोई हामीकार*_

_*📕 शिहाबुस साक़िब, सफह 48*_

_*ⓩ सब कुछ आपने पढ़ लिया कि अल्लाह खुद वसीला लगाने का हुक्म देता है खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबियों को वसीले की तालीम दी फुक़्हाये किराम ने वसीला लगाया और तो और खुद वहाबियों ने भी माना कि दुआ में औलिया अल्लाह का वसीला लगाना बिल्कुल जायज़ व दुरुस्त है तो फिर क्यों अपने ही मौलवियों की बात ना मानते हुये ये जाहिल वहाबी हम सुन्नी मुसलमानों को क़बर पुजवा कहकर शिर्क और बिदअत का फतवा लगाते फिरते हैं, सबसे पहले तो वहाबियों को ये करना चाहिए कि अपना स्टेटस क्लियर करें कि आखिर वो हैं क्या, कोई उनके यहां फातिहा करना हराम कहता है तो जायज़ कोई सलाम पढ़ने को शिर्क बताता है तो कोई खुद पढ़ता है कोई मज़ार पर जाने को मना करता है तो कोई खुद ही मज़ार पर पहुंच जाता है, आखिर कब तक ये वहाबी इस दोगली पालिसी से मुसलमानों में तफरका डालकर उनको गुमराह व बेदीन बनाते रहेंगे इसका जवाब कौन देगा*_

_*📮पोस्ट खत्म....*_
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