_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 019)*_
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_*☝🏻अकीदा :- सब आसमानी किताबें और सहीफ़े हक़ है और सब अल्लाह ही के कलाम है उनमें अल्लाह तआला ने जो कुछ इरशाद फरमाया उन सब पर ईमान जरूरी है। मगर यह बात अलबत्ता हुई कि अगली किताबों की हिफाजत अल्लाह तआला ने उम्मत के सुपुर्द की थी और अगली उम्मत। उन सहीफों और किताबों की हिफाजत न कर सकी इसलिए अल्लाह का कलाम जैसा उतरा था वैसा उनके हाथों में बाकी न रह सका बल्कि उनके शरीरों (बुरे लोगों) ने अल्लाह के कलाम में अदल बदल कर दिया जिसे तहरीफ कहते हैं।*_
_*उन्होंने अपनी ख्वाहिश के मुताबिक घटा बढ़ा दिया।*_
_*इसलिए जब उन किताबों की कोई बात हमारे सामने आये तो अगर यह बात हमारी किताब के मुताबिक है तो हम को तस्दीक करना चाहिए और अगर मुखालिफ है तो यकीन कर लेंगे कि उन अगली शरीर उम्मतियों की तहरिफ़ात से है।*_
_*और मुखालिफ या मुवाफिक कुछ पता न चले तो हुक्म है कि हम न तो तसदीक करें और न झुठलाये यूं कहें कि :*_
_*📝तर्जमा - अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसुलों पर हमारा ईमान है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 13*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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