_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 020)*_
―――――――――――――――――――――
_*☝🏻अकीदा :- चूंकि यह दीन हमेशा रहने वाला है इसलिए क़ुरआन शरीफ की हिफाजत अल्लाह तआला ने अपने जिम्मे रखी जैसा कि क़ुरआन शरीफ में है कि :*_
_*📝तर्जमा :- बेशक हमने क़ुर्आन उतारा और बेशक हम खुद उसके ज़रूर निगेहबान हैं।*_
_*इसीलिए अगर तमाम दुनिया क़ुर्आन शरीफ़ के किसी एक हर्फ़, लफ़्ज़ या नुक्ते को बदलने की कोशिश करे तो बदलना मुमकिन नहीं।*_
_*तो जो यह कहे कि क़ुर्आन के कुछ पारे या सूरतें या आयतें या एक हर्फ़ भी किसी ने कम कर दिया या बढ़ा दिया या बदल दिया वह काफिर है क्योंकि उसने ऐसा कह कर ऊसपर लिखी आयत का इन्कार किया।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 13*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
No comments:
Post a Comment