_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 017)*_
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_*नुबुव्वत के बारे में अकीदे*_
_*मुसलमानों के लिए जिस तरह अल्लाह ﷻ की जात और सिफात का जानना जरूरी है कि किसी दीनी जरूरी बात के इन्कार करने या मुहाल के साबित करने से यह काफिर न हो जाये इसी तरह। यह जानना भी जरूरी है कि नबी के लिए क्या जाइज है और क्या वाजिब और क्या मुहाल है क्यूंकि वाजिब का इन्कार करना और मुहाल का इकरार करना कुफ़्र की वजह है और बहुत मुमकिन है कि आदमी नादानी से अकीदा खिलाफ रखे या कुछ की बात जुबान से निकाले और हलाक हो जाए।*_
_*☝🏻अकीदा - नबी उस बशर को कहते हैं जिसे हिदायत के लिए वही भेजी हो अल्लाह तआला ने और रसूल बशर ही के साथ खास नहीं बल्कि फ़रिश्ते भी रसूल होते हैं।*_
_*☝🏻अकीदा - अम्बिया सब बशर थे और मर्द थे। न कोई औरत कभी नबी हुई न कोई जिन्न।*_
_*☝🏻अकीदा :- नबियों का भेजना अल्लाह तआला पर वाजिब नहीं। उसने अपने करम से लोगों की हिदायत के लिए नबी भेजे।*_
_*☝🏻अकीदा - नबी होने के लिए उस पर वही होना जरूरी है यह वही चाहे फरिश्ते के जरिए हो या बिना किसी वास्ते और जरिए के हो।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 12*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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