_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 016)*_
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_*वह आग कितने गज़ब की थी कि जिसमे काफ़िरों ने हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सल को डाला आग ऐसी थी के कोई उसके पास जा नही सकता था इसलिये उन्हें गोफ़न में रख कर फेंका गया ! जब आग के सामने पहुँचे तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और पूछा कि अगर कोई हाज़त हो तो आप बताये ! उन्होंने फ़रमाया की है लेकिन तुमसे नही ! और इस तरह इरशाद फ़रमाया कि :*_
_*📝तरजुमा : “उसको मेरे हाल का इल्म होना बस काफ़ी है मुझे अपनी हाज़त बयान करने से” !*_
_*उधर अल्लाह तआला ने आग को यह हुक़्म दिया कि*_
_*📝तरजुमा : “ऐ आग हो जा ठंडी और सलामती इब्राहीम पर”!*_
_*इस बात को सुनकर दुनिया में जहां कहीं पर आगें थीं यह समझते हुए सब ठंडी हो गयी कि शायद मुझी से कहा जा रहा है ! और नमरूद की आग तो ऐसी ठंडी हुई कि उलमा फ़रमाते हैं कि अगर उसके साथ वसलामन का लफ़्ज़ न होता तो आग इतनी ठंडी हो जाती की उसकी ठंड़क से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम को तक़लीफ़ पहुँच जाती ! बताना यह था कि आग का काम जलाने का जरूर है लेकिन अगर अल्लाह चाहे तो आग ठण्डी हो सकती है!*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 12*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा & (टीम)*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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