_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 030)*_
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_*अगर कोई यह कहे कि नबी के लिए हर जर्रे का इल्म मानने से खालिक और मखलूक में बराबरी लाजिम आएगी उसका यह कहना बिल्कुल बातिल है। ऐसी बात काफ़िर ही कह सकता है। क्योकि बराबरी तो उस वक्त हो सकती है जबकि जितना इल्म मखलूक को मिला है उतना ही इल्म खालिक के लिए भी माना और साबित किया जाये।*_
_*फिर यह कि जाती और अताई का फर्क बताने पर भी बराबरी और मसावात का इल्जाम देना खुले तौर पर ईमान और इस्लाम के खिलाफ है क्योंकि अगर इस फर्क के होते हुए भी बराबरी हो जाया करे तो लाजिम आयेगा कि मुमकिन और वाजिब वुजूद में बराबर हो जाएं। क्योंकि मुमकिन भी मौजूद है और वाजिब भी मौजूद है। इस पर भी मुमकिन और वाजिब को वुजूद में बराबर कहना खुला हुआ शिर्क है।*_
_*अम्बिया अलैहिमुस्सलाम गैब की खबरे देने के लिए आते ही हैं क्यूँकि दोज़ख, जन्नत, कियामत, हश्र, नश्र, और अज़ाब, सवाब, गैब नहीं तो और क्या है। नबियों का मनसब ही यह हैकि वह बातें बताये कि जिन तक अक्ल और हवास की भी पहुँच न हो सके और इसी का नाम गैब है। वलियों। को भी इल्मे गैब अताई होता है मगर वलियों को नबियो के जरिए से इल्मे गैब अता किया जाता है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 16*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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