_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 025)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - नुबुव्वत ऐसी चीज नहीं कि आदमी इबादत या मेहनत के जरिए से हासिल कर सके।*_
_*बल्कि यह महज़ अल्लाह तआला की देन है कि जिसे चाहता है अपने करम से देता है और देता उसी को है कि जिसको उसके लायक बनाता है। जो नुबुव्वत हासिल करने से पहले तमाम बुरी आदतों से पाक और तमाम ऊँचे अखलाक से अपने आप को संवार कर विलायत के तमाम दर्जे तय कर चुकता है।*_
_*और अपने हसब, नसब, जिस्म, कौल और अपने सारे कामों में हर ऐसी बात से पाक होता है जिनसे नफ़रत हो।*_
_*और उसे ऐसी कामिल अक्ल अता की जाती है जो औरों की अक्ल से कहीं ज्यादा होती है यहाँ तक कि किसी हाकिम और फ़ल्सफी की अक्ल उसके लाखवें हिस्से तक नहीं पहुँच सकती।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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