_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 026)*_
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_*📝तर्जमा :- "अल्लाह खुब जानता है जहां अपनी रिसालत रखे। यह अल्लाह का फल है जिसे चाहे। दे और अल्लाह बड़े फल वाला है।*_
_*☝🏻अकीदा :- शरीअत का कुानून यह है कि अगर कोई यह समझे कि आदमी कोशिश और मेहनत से नुबुब्बत तक पहुँच सकता है या यह समझे कि नबी से नुबुब्बत का जवाल यानी खत्म होना जाइज है वह काफ़िर है।*_
_*☝🏻अकीदा :- नबी का मासूम होना जरूरी है। इसी तरह मासूम होने की खुसूसियत फरिश्तों के लिए भी है। और नबियों और फरिश्तों के सिवा कोई मासूम नहीं। कुछ लोग इमामों को नबियों की तरह मासूम समझते हैं यह गुमराही और बद्दीनी है। नबियों के मासूम होने का मतलब यह है कि उनकी हिफाजत के लिए अल्लाह तआला का वादा है इसीलिए शरीअत का फैसला है कि उनसे गुनाह का होना मुहाल और नामुमकिन है अल्लाह तआला इमामों और बड़े बड़े वलियों को भी गुनाहों से बचाता है मगर शरीअत की रौशनी में उनसे गुनाह का हो जाना मुहाल भी नहीं।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 15*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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