_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 035)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- नबियों की तादाद मुकरर्र करना जाइज नहीं क्यों कि तादाद मुकरर्र करने और उसी तादाद पर ईमान रखने से यह खराबी लाजिम आयेगी कि अगर जितने नबी आये उन से हमारी गिनती कम हुई तो जो नबी थे उनको हमने नुबुवत से खारिज कर दिया और अगर जितने नबी आए उन से हमारी गिनती ज्यादा हुई तो जो नबी नहीं थे उन को हमने नबी मान लिया यह दोनों बातें इस लिए ठीक नहीं कि पहली सूरत में नबी नुबुब्बत से खारिज हो जाएंगे और दूसरी सूरत में जो नबी नहीं वह नबी माने जाएंगे और अहले सुन्नत का मजहब यह है कि नबी का नबी न मानना या ऐसे को नबी मान लेना जो नबी न हो कुफ है।*_
_*इसलिए एअ्तिकाद यह रखना चाहिए की हर नबी पर हमारा ईमान है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 17/18*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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