_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 048)*_
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_*नबी से महब्बत*_
_*हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की महब्बत अस्ल ईमान बल्कि ईमान उसी महब्बत ही का नाम है। जब तक हुजूर की महब्बत मा, बाप, औलाद और सारी दुनिया से ज्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता।*_
_*अक़ीदा :- हुजूर की इताअत ऐन (बिल्कुल) इताअते इलाही है और इताअते इलाही बिना हुजूर की इताअत के नामुमकिन है। यहाँ तक कि कोई मुसलमान अगर फर्ज़ पढ़ रहा हो और हुजूर उसे याद फरमाएं मतलब आवाज़ दें तो वह फौरन जवाब दे और उनकी खिदमत में हाजिर हो। वह शख्स जितनी देर तक भी हुजूर से बात करे वह उस नमाज में ही है। इससे नमाज़ में कोई खलल नहीं।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 21*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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