_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 051)*_
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_*नबी से महब्बत*_
_*☝🏻अक़ीदा :- हुजूर की ताजीम और तौकीर अब भी उस तरह फर्जे ऐन है जिस तरह उस वक्त थी। कि जब हुजूर हमारी जाहिरी आंखों के सामने थे। जब हुजूर का जिक्र आए तो बहुत आजिज़ी, इन्किसारी और ताजीम के साथ सुने और हुजूर का नाम लेते ही और उनका नामे पाक सुनते ही दुरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है।*_
_*📝तर्जमा :- "ऐ अल्लाह तू दूरूद, सलाम और बरकत नाजिल फरमा हमारे आका व मौला पर जिनका नामे पाक मुहम्मद है। जो सखावत और करम की कान हैं, उनकी करामत वाली औलादों और उनके अजमत वाले दोस्तों पर भी”।*_
_*हुजूर से महबत की अलामत यह है कि ज्यादा से ज्यादा उनका जिक्र करे और ज्यादा से ज्यादा उन पर दूरूद भेजे। और जब हुजूर का नाम लिखा जाए तो (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) पुरा लिखा जाए। कुछ लोग ‘सलअम या 'स्वाद लिख देते हैं यह नाजाइज व हराम है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 22*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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