_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 023)*_
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_*☝🏻अक़ीदा :- कुर्आन मजीद ने अगली किताबों के बहुत से अहकाम मन्सूख कर दिए हैं इसी तरह। कुर्आन शरीफ की बाज़ आयातें बाज आयतों से मन्सूख हो गई हैं।*_
_*☝🏻अक़ीदा :- नस्ख (मनसूख करने) का मतलब यह है कि कुछ अहकाम किसी खास वक्त तक के लिए। होते हैं मगर यह जाहिर नहीं किया जाता कि यह हुक्म किस वक्त तक के लिए है जब मिआ़द पूरी हो जाती है तो दूसरा हुक्म नाजिल होता है जिस में जाहिरी तौर पर यह पता चलता है कि वह पहला हुक्म उठा दिया गया और हक़ीक़त में देखा जाए तो उसके वक्त का खत्म होना बताया गया और मन्सूख का मतलब कुछ लोग बातिल होना कहते हैं लेकिन यह बहुत बुरी बात है। क्योंकि अल्लाह ﷻ के सारे हुक्म हक़ हैं उनके बातिल होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।*_
_*☝🏻अकीदा :- कुर्आन शरीफ की कुछ बातें मुहकम और कुछ बातें मुताशाबिह हैं। मुहकम वह बातें हैं। जो हमारी समझ में आती हैं और मुताशाबिह वह बातें हैं कि उनका पूरा मतलब अल्लाह ﷻ और अल्लाह के हबीब (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के सिवा कोई नहीं जानता और न जान सकता है। अगर कोई मुताशाबिह के मतलब की तलाश करे तो समझना चाहिए कि उसके दिल में कजी (टेढ़) है।।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 14*_
_*🖋तालिब-ए-दुआ : मुशाहिद रज़ा अज़हरी*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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