_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 075)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - कब्र के अज़ाब और कब्र की नेमतें हक़ हैं यह दोनों चीजें जिस्म और रूह दोनों पर हैं जैसा कि ऊपर बताया गया अगरचे जिस्म गल जाये जल जाये या खाक हो जाये मगर उसके असली टुकड़े क़ियामत तक बाकी रहेंगे और उन्हीं पर अ़ज़ाब या सवाब होगा और क़ियामत के दिन दोबारा इन्हीं पर जिस्म की बनावट होगी यह अजज़ा टुकड़े ‘ अ़जबुज़्ज़नब ' कहलाते हैं यह इतने बारीक होते है कि न किसी खुर्दबीन से नज़र आ सकते हैं न उन्हें आग जला सकती है न ज़मीन उन्हें गला सकती है यही जिस्म के बीज हैं इसीलए क़ियामत के दिन रूहें अपने उसी जिस्म ही में लौटेंगी किसी दूसरे बदन में नहीं जिस्म के ऊपरी हिस़्सों के बढ़ने घटने से जिस़्म नहीं बदलता जैसे कि बच्चा पैदा होता है तो छोटा होता है फिर बड़ा और हट्टा कट्ट्टा जवान होता है फिर वही बीमारी में दुबला पतला हो जाता है और उस पर जब नया गोश्त पोस्त आता है तो वह फिर अपनी असली हालत में आ जाता है इन तबदीलियों से यह नहीं कहा जा सकता कि शख़्स बदल गया ऐसे ही क़ियामत के दिन का लौटना है कि जिस्म के गोश्त और हड्डियाँ जो ख़ाक या राख हो गई हों और उनके ज़र्रे जहाँ कहीं भी फैले हुए हों अल्लाह तबारक व तआ़ला उन्हें जमा कर के उसको पहली हालत पर लायेगा और वह असली अजज़ा जो पहले से महफूज हैं उनसे जिस्म को मुरक्कब करेगा यानी बनायेगा और हर रूह को उसी पुराने जिस्म में भेजेगा इसका नाम `हश्र' है कब्र के अ़ज़ाब और सवाब का इन्कार गुमराही है*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 29 30*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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