_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 038)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - जो शख्स नबी न हो और अपने आप को नबी कहे वह नबियों की तरह आदत के खिलाफ अपने दावे के मुताबिक कोई काम नहीं कर सकता वर्ना सच्चे और झूटे में फर्क नहीं रह जायेगा।*_
_*फायदा - किसी नबी से अगर इजहारे नुबुव्वत के बाद आदत के खिलाफ कोई काम जाहिर हो तो उसे मोजिजा कहते हैं। नबी से उस के इजहारे नुबुव्वत से पहले कोई काम आदत के खिलाफ जाहिर हो तो उसे इरहास कहते हैं। खिलाफे आदत काम का मतलब ऐसे काम से है जिसे अक्ल तस्लीम करने से आजिज हो और जिन का करना आम आदमी के लिए नामुमकिन हो।*_
_*और वली से ऐसी बात जाहिर हो तो उसको करामत कहते हैं। आम मोमिनीन से अगर इस तरह का कोई काम होता तो उसे मुऊनत कहते हैं और बेबाक लोगों फासिको फाजिरों या काफिरो से जो उनके मुताबिक जाहिर हो उसे इस्तिदराज कहते हैं।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 18*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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