_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 013)*_
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_*💫खैर यह तो जुमला बीच में आ गया मगर ईमान वालों के लिए बहुत नफा बख्श और इन्सानों में रहने वाले शैतानों की खबासत को दूर करने वाला है। कहना यह है कि कौमे लूत पर अज़ाब कज़ाए मुबरमे हकीकी था।*_
_*हजरते खलीलुल्लाह अलानबीय्यिना व अलैहिस्सलातु वस्सलाम उसमें झगड़े तो उन्हें इरशाद हुआ :*_
_*📝तर्जमा :- "ऐ इब्राहीम इस ख्याल में न पड़ो बेशक उन पर अज़ाब ऐसा आने वाला है जो फिरने, का नहीं ।” ......और वह कज़ा जो ज़ाहिर में कज़ाए मुअल्लक़ है उस कजाए मुअल्लक़ तक बहुत से औलिया किराम की पहुंच होती है और औलिया किराम की दुआ से उन की तवज्जह से यह कजा इन सब बातों का खुलासा यह है कि क्यों, कैसे, क्यूंकर आदि का सम्बन्ध अक्ल से है और अल्लाह तआला की जात तक अक्ल पहुंच ही नहीं सकती और जहां तक अक्ल पहुँचती है वह खुदा नहीं। जब अक्ल वहां तक नहीं पहुँच सकती तो अक्ल या नज़र उसे घेरे में ले भी नहीं सकती।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 10/11*_
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