_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 007)*_
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_*☝🏻अक़ीदा : हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म और इरादा उसकी ज़ाती सिफ़तें हैं मगर आंख कान और जुबान से उसका सुनना, देखना और कलाम करना नही क्योंकि यह सब जिस्म हैं और वह जिस्म से पाक है अल्लाह हर धीमी से धीमी आवाज़ को सुनता है ! वह ऐसी बारीक़ चीज़ों को भी देखता है जो किसी खुर्दबीन या दूरबीन से न देखी जा सकें बल्कि उसका देखना और सुनना इन्हीं चीज़ों पर मुनहसिर (निर्भर) नहीं बल्कि वह हर मौजूद को देखता और सुनता है !*_
_*☝🏻अक़ीदा : अल्लाह की दूसरी सिफ़तों की तरह उसका कलाम भी क़दीम है ! हादिस और मख़लूक़ नही जो कुरान शरीफ़ को मख़लूक़ माने उसे हमारे इमाम आज़म हज़रत इमामे अबु हनीफ़ा, दूसरे ईमामों, और सहाबा रदियल्लाहु तआला अन्हुम ने काफ़िर कहा है !*_
_*☝🏻अक़ीदा : अल्लाह का कलाम आवाज़ से पाक है और यह कुरान शरीफ़ जिसकी हम अपनी ज़ुबान से तिलावत करते हैं और किताबों तथा कागज़ में लिखते लिखाते है उसी का बिना आवाज़ के क़दीम कलाम है ! हमारा पढ़ना लिखना और यह हमारी आवाज़ हादिस और जो हमने सुना क़दीम ! हमारा ययद करना हादिस और हमने जो याद किया वो क़दीम ! इसे यूं समझो की तजल्ली हादिस और मुतजल्ली (तजल्ली डालने वाला) क़दीम है !*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 7, 8*_
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