_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 003)*_
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_*👉🏻इसी सिलसिले में दूसरी बात यह भी ध्यान रखने की है कि अल्लाह की सिफ़तें कई हैं और अलग हैं और हर सिफ़त का मतलब भी अलग अलग है ! मूतरादीफैन नही, इसलिए सिफ़तें एने ज़ात नही हो सकती और सिफ़तें ग़ैर ज़ात इसलिए नही है कि ग़ैर ज़ात मानने की सूरत मद दो बातें ही सकती हैं ! या तो सिफ़तें क़दीम होंगी या हादिस (जो किसी के पैदा करने से पैदा हुई यानी मख़लूक़) अगर क़दीम मानते हैं तो कई एक क़दीम को मानना पड़ेगा जबकि क़दीम एक ही है ! और अगर हादिस तसलीम करतें हैं तो यह मानना भी जरूरी होगा वह क़दीम ज़ात सिफ़तों के हादिस होने या पैदा होने से पहले बगैर सिफ़तों के थी और यह दोनों बातें बातिल हैं !*_
_*इसलिए इन मुश्किलों से बचने के लिए अहले सुन्नत ने वह मज़हब इख्तियार किया कि सिफ़ाते बारी (अल्लाह तआला की सिफ़तें) न तो एन जात हैं और न ग़ैर ज़ात बल्कि सिफ़तें उस जाते मुक़द्दस को लाज़िम हैं किसी हाल में उससे जुदा नही और जाते बारी तआला अपनी हर सिफ़त के साथ अज़ली, अबदी, और क़दीम है !*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 6*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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