_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 066)*_
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_*☝🏻अक़ीदा - मरने के बाद मुसलमान की रुह अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग जगहों में रहती है। कुछ की कब्र पर कुछ की चाहेज़मज़म शरीफ में कुछ की आसमान और जमीन के बीच कुछ की पहले आसमान से सातवें आसमान तक कुछ की आसमान से भी आला इल्लीन में रहती हैं मगर यह रुहें जहां कहीं भी रहें उनका अपने जिस्म से रिश्ता उसी तरह बराबर काइम रहता है। जो लोग उनकी कब्रों पर जाते हैं उनको वह पहचान लेते है और उनकी बाते सुनते हैं। और रूह के देखने के लिए यही जरूरी नहीं कि रूहें अपनी कब्रों से ही देखे बल्कि हदीस शरीफ में रूह की मिसाल इस तरह है कि एक चिड़िया पहले पिंजरे में बन्द थी और अब उसे छोड़ दिया गया और इमामों ने यह लिखा है कि :*_
_*📝तर्जमा :- "बेशक पाक जानें जब बदन की गिरफ्त से अलग होती है तो आलमे बाला से मिल जाती हैं। और सब कुछ ऐसा देखती सुनती है जैसे यही मौजूद है"।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 27*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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