_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 046)*_
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_*शफाअत चाहे हुज़ूर खुद फरमायें या किसी दूसरे को शफाअत की इजाजत दें हर तरह की शफाअत हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के लिए साबित है। हुज़ूर की किसी किस्म का शफाअत का इन्कार करना गुमराही है।*_
_*अक़ीदा - शफाअत का मनसब हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को दिया जा चुका।*_
_*सरकार ﷺ खुद इरशाद फरमाते हैं कि :-*_
_*तर्जमा - मझे शफाअत का मनसब दिया जा चुका है और अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है कि :-*_
_*तर्जमा - मग़फ़िरत चाहो (ऐ रसूल) अपने खासों के गुनाहों और आम मोमिनन और मोमिनात कि।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 20/21*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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