_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 119)*_
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_*आखिरत और हश्र का बयान*_
_*यह क़ियामत का दिन पचास हज़ार साल का दिन होगा जिस की मु सीबतें अनगिनत होंगी। लेकिन जो अल्लाह के खास बन्दे हैं उनके लिए क़ियामत का दिन इतना हल्का कर दिया जायेगा कि जितनी देर में आदमी फ़र्ज़ की नमाज़ पढ़ ले उतनी ही देर का दिन मालूम होगा । कुछ लोगों के लिए पलक झपकते ही सारा दिन खत्म हो जायेगा । जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फरमाया कि*_
📝 _*तर्जमा : - क़ियामत का मुआ़मला नहीं मगर जैसे पलक झपकना बल्कि उससे भी कम ।*_
_*यानी अल्लाह के ख़ास बन्दों के लिए क़ियामत का दिन पलक झपकने के बराबर या उससे भी कम है । सब से बड़ी नेमत जो मुसलमानों को उस रोज़ मिलेगी वह अल्लाह का दीदार होगा क्योंकि अल्लाह तआ़ला का दीदार हर दौलत से बड़ी दौलत है जिसे एक बार उस की ज्यारत नसीब होगी वह उसकी लज़्ज़त को कभी नहीं भूल सकता । और सब से पहले अल्लाह का दीदार दोनों जहान के सरदार हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को होगा ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 39/40*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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