Thursday, October 3, 2019



    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 025 📕*_
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              💫 *_निकाह का बयान_* 💫

✍🏻 *_आला हजरत इमाम अहमद रजा कादरी मुहद्दिस बरैलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते है....._*

       *_"कुछ लोगो का खयाल है, की निकाह मुहर्रम के महीने मे नही करना चाहीये, यह खयाल फुजुल व गलत है! निकाह किसी महीने मे मना नही!"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 179*_

  👉 *_मस्अला अक्सर लोग माहे सफर मे शादी ब्याह नही करते, खुसुसन माहे सफर की इब्तीदाई तेराह (1 से 13) तारीखे बहु ज्यादा मनहुस मानी जाती है! और उनको "तेराह-तेजी" कहते है! यह सब जेहालत की बाते है! हदिसे पाक मे फरमाया की सफर कोई चिज नही! यानी लोगो का इसे मनहुस समझना गलत है! इसी तरह जिल्कदा के महीने को भी बहुत लोग बुरा जानते है, और उसको "खाली का महीना" कहते है! इस माह मै भी शादी नही करते! यह भी जेहालत और लग्वीयत है! गरज की शादी हर माह के हर तारीख को हो सकती है!_*

_*(Conclusion. शरीयत ए इस्लामी के मुताबीक किसी महीने की कोई तारीख मन्हुस नही होती! बल्की हर दिन हर तारीख अल्लाह अज्जा व जल्ला की बनाई हुई है! गरज की हर महीने की किसी भी तारीख को निकाह करना दुरुस्त है!)*_

📕 *_बहार ए शरीयत, जिल्द नं 2, हिस्सा नं 16, सफा नं 159_*

 ✍🏻 *_हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसुल  आजम शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी बगदादी  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] नक्ल फरमाते है। कि...._*

  💫 *_"निकाह जुमेरात या जुमा को करना मुस्तहब है। सुबह कीे बजाए शाम के वक्त़ निकाह करना बेहतर व अ़फज़ल है।"_*

📕 *_गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115_*

✍🏻  *_आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ  कादरी बरैलवी रदी अल्लाहु तआला अन्हु "फ़तावा-ए-रज़वीया" में नक़्ल फरमाते है। की......_*

 💫     *_"जुमा के दिन अगर जुमा की अज़ान हो गई हो तो उसके बाद जब तक नमाज़ न पढ़ ली जाए निकाह की इजाजत नहीं के अजान होते ही जुमा के नमाज के लिए जल्दी करना वाज़िब है। फिर भी अगर कोई अज़ान के बाद निकाह करेगा तो गुनाह होगा मगर निकाह सही हो जाएगा"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 158*_

    👉🏻 *_"दुल्हा दुल्हन दोनो के माँ बाप को चाहिये कि निकाह के लिए सिर्फ और सिर्फ सुन्नी का़जी को ही बुलावाए । क़ाजी वहाबी, देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह न हो।_*

✍🏻 _*.... इमामे इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। कि.....*_

  _*"वहाबी से निकाह पढ़वाने में उसकी ताज़ीम होती है जो कि हराम है लिहाजा उससे बचना ज़रूरी है।*_

_📕 *अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16*_

           👉🏻 *_.... निकाह की शर्त यह है कि दो गवाह हाजिर हो । इन दोनों गवाहों का भी सुन्नी सहीउल अ़कीदा होना ज़रूरी है।_*

✍🏻 *_[मसअ़ला :-].... एक गवाह से निकाह नही हो सकता जब तक दो मर्द या एक मर्द दो औरतें मुस्लिम [सुन्नी] समझदार बालिग न हो।_*

📕 *_फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 163_*

✍🏻 *_[मसअ़ला :-].... सब गवाह ऐसे बद-मज़हब है की, जिन की बद-मज़हबी कुफ़्र तक पहुँच चुकी हो  तो निकाह नही होगा।_*

📕 *फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 61*

✍🏻 *[हदीस :-].... _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया...._*

*💎 _"गवाहों के बगैर निकाह करने वाली  औरते ज़ानिया [ज़िना करने वाली] है।_*

📕 *_तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1 बाब नं 751, हदीस नं 1095, सफा नं 563_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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