Thursday, October 3, 2019



    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 039 📕*_
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💫💫 *_[सोहबत के कुछ और आदाब]_* 💫💫

*👉🏻 _जैसा के हम पहले ही बयान कर चुके है कि मज़हब ए  इस्लाम हमारी हर जगह हर हाल में रहनुमाई करता हुआ नज़र आता है!  यहाँ  तक कि मियाँ बीवी के आपसी तअ़ल्लुक़ात में भी एक बेहतरीन दोस्त व रहनुमा बन कर उभरता है और हमारी भरपूर रहनुमाई करता है।_*

*👉🏻 _यहाँ हम श़रई रोशनी में  मुबाशरत (सोहबत) के कुछ और आदाब बयान कर रहे है जिसे याद रखना और उस पर अ़मल करना हर शादी शुदा मुसलमान मर्द व औरत पर ज़रूरी है।_*

              *_सोहबत तन्हाई मे करे_*

*👉🏻 _आपने सड़कों पर, सिनेमा हाल में और बागो  में खुले आम कुछ पढ़े लिखे कहलाने वाले मार्डन इन्सान, जो  इन्सानी शक़्ल में जानवर नज़र आते है क्योंकी वह सड़को और बाग़ो में ही वह सब कुछ कर लेते है जो उन्हें नही करना चाहिये। लेकिन अल्हमदुलिल्लाह!  हम मुसलमान है और अशरफुल मख़लूकात है। इसलिए हम पर ज़रूरी है कि हम इस्लाम का हुक़्म माने और मॉर्डन (Modern) जानवर नुमा इंसानो की नक़्ल से बचे!   लिहाज़ा याद रखिये सोहबत हमेशा तन्हाई में ही करे और ऐसी जगह करे जहाँ किसी के आने का कोई ख़तरा न हो। और उस  वक्त़ कमरे में अँधेरा कर ले रोशनी मे हरगिज़ न हो।_*

✍🏻 *_मसअ़ला :- बिवी का हाथ पकड कर मकान के अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया और लोगो को मालुम हो गया की वती (मुबाशरत) करने के लिये ऐसा किया है, तो यह मकरूह है_*

📕 *_बहारे शरीयत जिल्द नं 2,  हिस्सा नंबर 16,सफा नं 57_*

✍🏻 *_मसअ़ला :- जहाँ कुरआ़ने करीम की कोई आयते करीमा, किसी चीज़ पर लिखी हुई हो अगर्चे ऊपर शीशा (काँच) हो जब तक उस पर  कपडे का ग़िलाफ़ न डाल लें वहाँ सोहबत करना या बरहेना (नंगा) होना बेअदबी है।_*

📕 *_फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 258_*

✍🏻 _हुज़ूर ग़ौसे आ़ज़म़ [रदिअल्लाहु तआलाअन्हु] *"गुन्यतुत्तालिबीन"* में और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] अपनी *"मल्फ़ूज़ात"* *"अल-मसफुज"* मे फरमाते है..........._

*👉🏻 _"जो बच्चा समझदार है और दूसरों के सामने बयान कर सकता है उस के सामने सोहबत करना मक़रूह (तहरीमी (यानी शरीअ़त में ना पसंद, व नाजाइज़) है"_*

✍🏻 *_मसअ़ला:- किसी की दो बीवीयां हो तो एक बीवी से दूसरी बीवी के सामने सोहबत करना जाइज़ नही। मर्द को अपनी बीवी से हिजाब (पर्दा )नही लेकीन एक बीवी को दूसरी बीवी से तो पर्दा फ़र्ज़ है और शर्म व हया ज़रूरी है"_*

_📕 *फ़तावा-ए-रज़्वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 207*_

                  *_मुबाशरत से पहले वुज़ू_*

*👉🏻 _मुबाशरत (सोहबत) से से पहले वुज़ू कर लेना चाहिये इस के बहुत से फ़ायदे है जिन में से चन्द हम यहाँ बयान करते है।..........._*

*1⃣ _अव्वल वुज़ू करना सवाब और बाइसे बरकत है।_*

*2⃣ _सोहबत से पहले वुज़ू करने की हिक्मत एक यह भी है के मर्द और औरत दोनो मे यह एहसास पैदा हो कि सोहबत हम सिर्फ़ अपनी ख्वाहिशाते नफ्सानी पुरा करने के लिये नही कर रहे है (मज़ा लेने के लिए नही कर रहे हैं।) बल्कि नेक सालेह औलाद पैदा करना मक़्सद है! दुसरी हिक्मत यह है की किसी भी वक्त़ यादें इलाही से हमें गा़फ़िल नही होना चाहिए।_*

*3⃣ _मर्द बाहर के कामों से और औरत घर के कामों की वजह से दिन भर के थके मांदे होते हैं। थका जिस्म दूसरो के लिये  फ़ायदा बख्श साबीत नही होता है! लिहाजा वुज़ू कर लेना  चुस्ती,  क़ुव्वत और खुद ऐतेमादी का सबब बनता है!_*

*4⃣ _दिन भर की भागदौड मे जिस्म व चेहरे पर धुल मिट्टी जरासीम (किटाणु) मौजूद रहते है!  जब मर्द व औरत बोस व किनार (चुम्मन) करते है। तो यह जरासीम मुँह में और सांसो के जरीए जिस्म मे दाखील हो सकते है! जिस से आगे मुख्तलिफ अमराज (बीमारियॉ) के पैदा होने का ख़तरा होता है। ऐसे सैकड़ों फ़ायदे है जो वुज़ू कर लेने से हासिल होते हैं।_*

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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