_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 144)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
☝️ _*अकीदा : - शिर्क का मतलब यह है कि अल्लाह के अलावा किसी दूसरे को वाजिबुल वुजूद या इबादत के लाइक माना जाये यानी खुदा तआला के साथ अल्लाह और माबूद होने में किसी दूसरे को शरीक किया जाये और यह कुफ्र की सब से बदतरीन किस्म है । इसके सिवा कोई बात अगरचे कैसी ही बुरी और सख्त कुफ्र हो फिर भी हकीकत में शिर्क नहीं है । इसीलिये शरीअत ने किताबी काफिरों मतलब तौरात , जबूर या इन्जील के मानने वालों और मुशरिकीन में फर्क किया है जैसे किताबी का जिबह किया हुआ जानवर हलाल होगा और मुशरिक का नहीं । ऐसे ही किताबी औरत से मुसलमान निकाह कर सकता है और मुशरिक औरत से नहीं । इमामे शाफेई रहमतुल्लाहि तआला अलैहि यह भी कहते हैं कि किताबी से जिज़या लिया जायेगा और मुशरिक से नहीं लिया जाएगा । और कभी ऐसा भी होता है कि शिर्क बोल कर कुफ्र मुराद लिया जाता है । चाहे अल्लाह तआला के साथ कोई शरीक करे या किसी नबी . की तौहीन करे यह सब शिर्क में शामिल होते हैं । यह जो कुर्आन शरीफ़ में आया है कि शिर्क नहीं बख्शा जायेगा वह हर कुफ्र के मअना पर है यानी हरगिज किसी तरह के कुफ्र की बख्शिश न होगी । कुफ्र के अलावा बाकी सारे गुनाहों के लिए अल्लाह तआला की मर्जी है चाहे वह सज़ा दे या बख्श दे ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 49/50*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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