Wednesday, November 13, 2019



  _*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 145)*_
_*―――――――――――――――――――――*_

                  _*ईमान और कुफ्र का बयान*_

_*☝️अक़ीदा : - जिस मुसलमान ने गुनाहे कबीरा किया हो वह मुसलमान जन्नत में जायेगा । चाहे अल्लाह अपने करम से उसे बख्श दे या हुजूर सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम उसकी शफाअत कर दें या अपने किये की सजा पाकर जन्नत में जायेगा फिर कभी न निकलेगा ।*_

_*☝️अक़ीदा : - जो कोई किसी काफ़िर के लिए मगफिरत की दुआ करे या किसी मरे हुए मुरतद को मरहूम था मगफूर या किसी मरे हुए हिन्दू को बैकुन्ठबासी ( स्वर्गवासी ) कहे वह खुद काफिर है।*_

 _*☝️अक़ीदा : - मुसलमान को मुसलमान और काफिर को काफ़िर जानना दीन की ज़रूरी बातों में से है , अगरचे किसी खास आदमी के बारे में यह यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि जिस वक़्त उसकी मौत हुई हकीकत में वह मोमिन था या काफिर जब तक कि उस के खातमे और मौत का हाल शरीअत की दलील से न साबित हो मगर इसका यह मतलब भी नहीं कि जिसने यकीनी तौर पर कुफ्र किया हो उसके कुफ्र में भी शक किया जाये क्यूँकि जो यकीनी तौर पर काफिर हो उस के काफिर होने के बारे में शक करने वाला भी काफिर हो जाता है । कोई आदमी अपने खातिमे के वक़्त मोमिन है या काफिर इसकी जानकारी की बुनियाद क्यामत के दिन पर है लेकिन शरीअत का कानून ज़ाहिर पर है । इसे यूँ समझिये कि एक आदमी सूरत से बिल्कुल मुसलमान हैं , नमाज़ी है , हाजी है लेकिन दिल में ऐसे लोगों को अच्छा समझता हो जिन लोगों ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की है तो चुंकि उस का यह कुफ्र किसी को मालूम नहीं है वह मुसलमान ही माना जायेगा । दूसरी बात यह है कि अगर कोई यहूदी नसरानी या कोई बुतपरस्त मरा है । मगर अल्लाह और रसूल का यही हुक्म है कि उसे काफ़िर ही जानें और उस के साथ उसी तरह बर्ताव किया जायेगा जैसा कि उसकी ज़िन्दगी में काफिरों के साथ किया जाता है । जैसे मेल , जोल , शादी , नमाज़े जनाज़ा और कफन दफन वगैरा में मुर सलमानों का काफिरों के साथ बर्ताव है । इसलिए कि जब उसने कुफ्र किया है तो ईमान वालों के लिये फर्ज है कि वह उसे काफिर ही समझें और खातिमे का हाल अल्लाह पर छोड़ दें । इसी तरह जो जाहिर में मुसलमान हो और उसकी कोई बात या उसका कोई काम ईमान के खिलाफ न हो तो उसे मुसलमान ही समझना फर्ज है अगरचे हमें उसके खातिमे का भी हाल नहीं मालूम । इस जमाने में कुछ लोग यह कहते हैं जितनी देर काफिर को काफिर कहने में लगाओग उतनी देर अल्लाह अल्लाह करो तो सवाब मिलेगा । इस का जवाब यह है कि हम कब कहते हैं कि काफिर काफिर का वजीफा कर लो बल्कि मतलब यह है कि काफिर को दिल से काफ़िर जानो और उसके बारे में अगर पूछा जाये तो उसे बेझिझक साफ साफ काफिर कह दो । सुलह कुल्लियों की तरह उस के कुफ्र पर पर्दा डालने की ज़रूरत नहीं ।*_


_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 50*_

_*📮जारी रहेगा.....*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

No comments:

Post a Comment

Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...