_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 141)*_
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_*ईमान और कुफ्र का बयान*_
_*☝️अकीदा : - दीन की ज़रूरियात में से जिस चीज़ का हलाल होना नस्से कतई ( यानी कुर्आन और अहादीस ) से साबित हो उसको हराम कहना और जिसका हराम होना . यकीनी हो उसे हलाल बताना कुफ्र है जबकि यह हुक्म दीन की ज़रूरियात से हो और अगर मुन्किर उस दीन की ज़रूरी बात से आगाह है तो काफ़िर है*_
_*👉मसअ्ला : - उसूले अकाइद ( यानी बुनियादी अकीदों में ) किसी की तकलीद या पैरवी जाइज़ नही बल्कि जो बात हो वह कतई यकीन के साथ हो चाहे वह यकीन किसी तरह भी हासिल हो उस के हासिल करने से खास कर इल्मे इस्तिदलाली की ज़रूरत नहीं । हाँ कुछ फ़रूए अकाइद में तकलीद हो सकती है इसी बुनियाद पर खुद अहले सुन्नत में दो गिरोह हैं ।*_
_*( 1️⃣ ) मातुरीदिया : - यह गिरोह इमाम इलमुल हुदा हज़रत अबू मन्सूर मातुरीदी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पैरवी करने वाले हैं ।*_
_*( 2️⃣ ) अशाइरा : - यह दूसरा गिरोह हज़रत इमाम शैख अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह की पैरवी करने वाला है । और ये दोनों जमाअतें अहले सुन्नत की ही जमाअतें और दोनों हक पर हैं । अलबत्ता आपस में कुछ फुरूई बातों का इख़्तिलाफ़ है । इनका इख्तिलाफ हनफी शाफेई की तरह है कि दोनों हक पर हैं । कोई किसी को गुमराह और फासिक नहीं कहता है ।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 48*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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